Ek garib pita jo haquikat mein garib hoker bhi amir bana

Ek garib pita jo haquikat mein garib hoker bhi ameer bana

आज हर मनुष्‍य  किसी ना किसी परिस्थिति में खुद को अकेला मानता है चाहें वह धन के मामले में हो । य

फिर रिश्‍तों के मामले में या अपने ही कैरियर को लेकर ।

आप सभी ने अपने जीवन में कभी ना कभी विपरीत परिस्‍थतियों का सामना जरूर किया होगा ।

उन सब में से आज हम सिर्फ एक सोच के बारें में बात करने जा रहे हैं ।

इंसान धन से नहीं बल्कि सोच से गरीब होता है ।

इसे एक कहानी के माध्‍यम से  समझते हैं ।

एक पिता जो कि कोर्ट में प्राइवेट काम करते  है ।

मुश्‍किल से उनकी आय महीने की 7-8 हजार रूपये होगी ।

उनके दो बच्‍चे है ।

एक लड़का और एक लड़की ।

घर में ग्रहणी भी है जो कि घर को संभाले  हुये है ।

पिता अपने बच्‍चों की हर ख्‍वाईश को पूरी करने के लिये दिन-रात एक करते हैं ।

अपनी लूना से आना-जाना करते है ।

जो की अब पुरानी हो चुकी है ।

जिसमें हर दिन कोई ना कोई प्रॉब्‍लम आती है ।

कभी पाइप से पेट्रोल गिरता है । तो कभी साइलेंसर बिगड़ता है ।

जो पिता अपने बच्‍चों का इतना ख्‍याल रखते है ।

वह अपना ख्‍याल रखना भूल जाते है ।

साइलेंसर भी कबाड़ से लेकर  मिस्‍त्री के पास जाकर सुधरवाते  हैं  ।

ईमानदार इतने है कि कभी भी एक रूपये की भी हेराफेरी अपने काम में नहीं कि ।

सम्‍मान हो या अपमान हर स्थिति में अपने आपको संभाले रखा है ।

अपने आत्‍मसम्‍मान की रक्षा की ।

  यह सब कुछ वह इसलिये सहते हैं , ताकि उनके परिवार का भरण-पोषण हो सके ।

गरीब पिता की जिन्‍दगी का Turning Point

वह उनके परिवार में संस्‍कार और आदर्शता का जो परचम लहराये हैं वह पूरे समाज एवं नगर में ख्‍याति बन चुका है ।

उनके ईष्‍ट श्री राम संग सिया है ।

उनके गुरू वनवासी भगवान हैं ।

जिंदगी की इसी जद्दोजहद के चलते उनकी मुलाकात एक संत प्रकृति के गुणी विद्वान व्‍यक्ति से हुयी ।

जिन व्‍यक्ति के पास यह पहुंचे उनके चहरे से अलग सा ही तेज झलकता है ।

ज्ञान इतना कि जितना चाहों उतना निकाल लो कभी कम नहीं पड़ेगा ।

अपनी अगली पोस्‍ट में इन्‍ही के बारें में चर्चा करेंगे ।

पढि़येगा जरूर ।

इन्‍ही दिव्‍य पुरूष से एक पिता की मुलाकात होती है ।

जो अपनी प्राणों से प्‍यारी पुत्री को यहां पढ़ने के लिये तथा साथ ही अच्‍छे संस्कार ग्रहण करने के लिये पहुंचाते है ।

आज के जमाने में सद्गुरू मिलना संभव है ।

लेकिन ऊंगली पकड़ कर हर कदम पर साथ  देने वाले गुरू का मिलना नामुमकिन है ।

जिन्‍हें भी ऐसे गुरू मिले है ।

वे  अति सौभाग्‍यशाली है ।

उनका हमेशा आदर करना कभी-भी उनकी छाया से दूर मत जाना ।

एक पिता के लिये इससे बड़ी बात क्‍या होगी की बेटी जहां पर पढ़ने जा  रही है ।

वह एक गुरूकुल है जहां विद्या के ज्ञान के साथ ही, संस्‍कारों का ज्ञान, व्‍यवहारिक ज्ञान आदि एक साथ मिलता हो ।

पिता को भी सहारा मिल गया ।

डूबती नैया का किनारा मिल गया ।

एक छोटे भाई सा सहारा मिल गया ।

जिनके पास वह अपने निजी जिंदगी का सुख-दु:ख बांट सकते थे ।

और अपने बच्‍चों  का भविष्‍य सुनिश्‍चित कर सकते  ।

जैसा कि हमने आपको पहले बताया था ।

इन्‍हीं पिता के दो बच्चे है एक पुत्र और एक पुत्री , पुत्र का भविष्‍य अंधकारमय था।

                            इसी राह में मिला पुन: एक नया रास्‍ता

तीन साल से कक्षा 10 में उत्तीर्ण नहीं हो पा रहा था ।

पिता जी को सही गाइडलाइन नहीं मिल पा रही थी ।

कभी पत्राचार से तो कभी प्राइवेट पेपर बच्‍चे को दिलवा रहे थे । 

उम्‍मीद टूटती हुई नज़र आ रही थी ।

बहन ने भी कह दिया था कि अब तो भाई का पास होना मुश्‍किल है ।

चूंकि पिता को एक छोटे भाई रूपी गुरू मिल गये थे।

जिन्‍होंने हजारों बच्‍चों का भविष्‍य बिगड़ने से बचाया था ।

उनसे अपनी समस्‍या बतायी हमने आपको पहले ही बताया है  ।

कि बेटी की पढ़ाई वहीं चल रही थी ।

भाई का भी एडमिशन उसी Institute में कराया गया ।

जब गुरू साथ होते हैं  तो सब बंद रास्‍ते खुल जाते है ।

 रास्‍ते में कितनी भी बड़ी रूकावट हो सब दूर हो जाती है ।

गुरू की उंगली पकड़ कर छोटे भाई ने भी 10 वीं परीक्षा उत्तीर्ण कर ली ।

पिता की आंखों में खुशी के आंसू थे । 5000/-   हाथ में लिये एक पिता खुशी में झुमकर अपने पुत्र के गुरू के आगे खड़े थे ।

वे कह रहे थे कि इसे आप स्‍वीकार कर लीजिए ।

और कहे कि आज मैं (वे) खुश हूं ।

 गुरू अपनी गुरूदीक्षा के अलावा एक कण भी लेना उचित नहीं समझते है ।

वे उन अविभावक को प्रणाम करते हुये कहे कि जब आप खुश हो तो मुझे सब मिल गया ।

और उन्‍होंने 5000/- उन अभिभावक को यह कहकर लौटा दिये की ये अभी इसके आगे की पढ़ाई में काम आयेंगे ।

 इसलिये उन्‍होंने पूरे रूपये वापस कर दिये ।

 पिता से कहा इन रूपयों से बेटे का आईटीआई में एडमिशन करवाना ।

उसकी शिक्षा में इन रूपयों का इस्‍तेमाल करना ।

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आज के जमाने में ऐसे गुरू (Tutor/mentor) मिलना वाकई में सौभाग्‍य की बात है ।

फिर क्‍या था ।

बच्‍चे का एडमिशन आई टी आई में हो गया ।

क्‍या जानना नहीं चाहेंगे कि यह कैसे हुआ ? 

उस बच्‍चे ने अपनी संस्‍था में विषय टर्नर में अपनी प्रतिभा को प्रमाणित किया । 

प्रथम आने की वजह से उसे द्वितीय माह से ही 125 /- स्‍कॉलरशिप मिलेगी जो पूरे दो वर्ष के अंत तक मिलते रहेगी ।

 तब फिर उससे बैंक का अकाउंट नंबर मांगा गया जिससे की  उसमें स्‍कॉलरशिप ट्रांसफर की जा सके ।

जानकर पुन: अचंभित मत होईये कि उसका बैंक सेविंग अकाउंट भी इसी वजह से खुलवाना पडा़ ।

शायद आप समझ सकते हैं कि वह खाता क्‍यों नहीं रहा होगा ।

आज वह बेटा अपने institute में बहुत मेहनत कर रहा है ।

पिता सदैव खुश नज़र आते हैं बल्कि माता भी कहने लगी हैं कि यह धरती में निश्‍चित बहुत कुछ करने के लिये ही भगवान ने इसे पहुंचाया है ।

अब तो इसके गुरू भी कहने लगे है कि यह तो इतिहास लिखने आया है ।

 पिता के हृदय में अब संतोष है कि बेटे का कैरियर सुनिश्‍चित हो गया है।

शायद उनके मन में यह अनुभूति हुई होगी कि  भविष्‍य में बच्‍चा कुछ ना कुछ जरूर कर लेगा ।

अब बात बिटिया की करते हैं जो की Medical Entrance Exam की तैयारी कर रहीं है ।

उसे भी लगभग 2-3 साल हो चुके है ।

पर हिम्‍मत के आगे और कठिन परिश्रम के आगे तो भगवान को भी झुकना पड़ता है ।

यही विचार रखकर वह भी  निरंतर पढ़ाई कर रही है ।

उसके दिमाग में भी यह चलने लगा है कि हम दोनों भाई-बहन अपना कैरियर तो बना ही लेंगे ।

                                  निजी दायित्‍व को निभाने से…

और बड़ी बात यह होगी कि हमारे माता-पिता गर्व से सम्‍मान से सदैव खुश रहेंगे ।

वे सदैव स्‍वयं को गौरवान्‍वित महसूस करेंगे ।

आज वे और माता अक्‍सर सभी से ऐसा कहते हैं कि सभी के परिवार में ऐसी ही खुशियाँ फैलती रहनी चाहिये ।

हर माता-पिता को ऐसी ही खुशियाँ और आत्‍मविश्‍वास बढ़ाने हेतु हर बच्‍चों को अपने निजी दायित्‍व को निभाना चाहिये ।

बल्कि यह भी कहते हैं कि माता पिता कि आशा ही बच्‍चों का उज्‍जवल भविष्‍य होना होता है ।

तो निश्‍चित ही बच्‍चों को भी चाहिये  की वे अपने कैरियर को बनाने के लिये 100% प्रयत्‍न करें।

क्‍योंकि यह प्रयत्‍न ही सफलता दिलाता है।

और इस सफलता में ही माता-पिता गुरूजनों का आर्शीवाद छिपा होता है ।

और यही माता-पिता की आशा बनता है ।

इसमें तो कोई दोहमत नहीं है कि कर्म ही पूजा है ।

अतएव कर्म करने की ताकत भी किसी ना किसी वजह से या प्रेरणा से या फिर मजबूरी से ही मिलती है ।

उसी समय व्‍यक्ति अपने जीवन में इतिहास लिखने की ठान लेता है कसमें खा लेता है जूनुन उसके मस्‍तक में चढ़ जाता है ।

बस उन दोनों बच्चों ने भी यही किया ।

हां, एक बात बहुत ज्यादा गहराई से आप लोगों के दिमाग में आनी चाहिए कि कुछ लोगों के इतिहास तो होते हैं किन्‍तु पन्‍नों में नहीं दिखते ।  

 हमारी दृष्टि में पिता अपने बच्‍चों को किसी भी बात की कोई भी कमी महसूस नहीं होने देते है ।

                          बेटी का सपना डॉक्‍टर बनने का है 

जब भी बेटी Exam देने जाती पिता जी हमेशा प्राईवेट गाड़ी करते और उसे परीक्षा देने ले जाते ।

हर बार गाड़ी का खर्च वहन करना मुश्किल होता है ।

उस पिता की आय महीने की ही बा-मुश्किल भरण-पोषण और बच्‍चों कि पढ़ाई के लिये ही हो पाती है ।

जानकर आश्‍चर्य ना हो तो आपको बता दे  उनका किसी भी बैंक या पोस्‍ट ऑफिस में कोई खाता ही नहीं है यहां तक हमने जानकारी ली है ।

 आज यदि उन्‍हें 10 %  EWS मिल जाती तो वह MNS में ही सलेक्‍ट हो गयी होती क्‍योंकि last year भी कुछ नंबर कम थे ।  

बताइये वह पिता अपने बच्‍चों  को किस प्रकार परीक्षा दिलाने ले जाते होंगे ।

यह सोच व्‍यक्ति को अमीर बनाती है ना कि गरीब ।

उनके बच्‍चे दुनिया के सबसे अमीर बच्‍चों  में से एक है ।

जिनके पिता ने उन्‍हें कभी भी गरीब होने का अहसास नहीं दिलाया हर ख्‍वाईश भी पूरी करते है ।

चाहे कपड़े की हो एजुकेशन की हो या फिर कहीं आने जाने की हो ।

यह सोच ही हमें यह सिखाती है कि इंसान धन से नहीं बल्कि सोच से गरीब होता है।

यदि  दुनिया के किसी भी बच्‍चों के मन में कभी यह ख्‍याल आये की वह एक गरीब परिवार की  बच्‍चे है।

तो शायद यह उनकी खुद की सोच की उपज है ।

ना कि उनकी परिस्‍थति की ।

बस इसी प्रकार अगली कड़ी में एक जबरदस्‍त रियल स्‍टोरी जिसमें सिर्फ उनके नाम और पता नहीं होता क्‍योंकि किसी के आत्‍म सम्‍मान या आत्‍म विश्‍वास में यह सत्‍य कहीं असत्‍यता का प्रकार बनकर उन्‍हें दर्द दे । ….. तो मिलते है अगले अंक में …..