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हैरान कर देने वाले रोचक तथ्य
- hairan kar dene vale rochak tathya कि 1991 का मंदिर जीर्ण-शीर्ण और खण्डहर में बदलता गया।
- 1996 अप्रैल में अचानक हिन्दुस्तान में उस समय अध्यात्मिक केन्द्र के रूप में विख्यात हो गया ।
- जब वहां एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया ।
- इस यज्ञ का नाम ‘श्री राम महायज्ञ’ था ।
- बी.बी.सी लंदन (रेडियो) के अनुसार यह यज्ञ हिन्दुस्तान में अब तक हुये सभी धार्मिक अनुष्ठानों से भारी था
- धार्मिक अनुष्ठान में एक बार में एक लाख व्यक्तियों के भोजन की सुचारू व लगातार व्यवस्था की गई थी ।
- एवं यह अनुमान लगाना बहुत कठिन था कि इसमें कितने व्यक्ति शामिल हो रहे है ?
- चारों ओर लाखों की संख्या में सिर्फ व्यक्ति ही व्यक्ति नजर आ रहे थे ।
- इस प्राचीन मंदिर की मूर्ति अयोध्याशरण नामक संत के द्वारा गढ़ी गई थी ।
- यह रावतपुरा में स्थित है ।
- इस मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा भी अयोध्याशरण नामक संत के द्वारा करवाई गई थी ।
- साधु-संत एवं महात्माओं के रूकने हेतु एक कुआं और एक कमरा बनावाया गया था ।
- इस मंदिर का महत्व सिर्फ आस-पास के गांव वालों हेतु मंदिर होने की वजह मात्र से था ।
- वर्ष 1991 के आरंभ में ही वहां एक बालक अवस्था के संत ने आकर अपना डेरा डाल दिया ।
- उस बालक ने एक यज्ञ आयोजन करवाने के पश्चात् यहीं अपना निवास भी बना लिया ।
- आने वाले लोगों को लगातार धर्म, सत्य, त्याग और प्रेम के मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते थे ।
- तरूण अवस्था के संत लोगों की समस्याएं भी सुलझाते रहते थे । जैसा सोचोगे , वही पाओगे बात सही होने लगी थी।
- हैरतअंगेज क्षमताओं और सरल स्वभाव के चलते संत की ख्याति धीरे-धीरे फैलने लगी थी ।
- देखते ही hairan kar dene vale rochak tathya कार्य भक्तों और श्रद्धालुओं की मदद से प्रारंभ हो गये थे ।
आयोजन की भव्यता का अनुमान कैसे लगायें ?
आने वाले लोगों के लिये दोपहर 12 बजे से रात्रि दो बजे तक शुद्ध देशी घी के इस भंडारे में अनुमानत: तीन करोड़ रूपये खर्चा हुआ था ।
- इस श्री राम महायज्ञ के दौरान नौ दिन तक बिना रूके प्रसाद का वितरण होता रहा था ।
- प्रसाद वितरण में बूंदी, हलुवा, खीर, मालपुआ, जलेबी रहता था ।
- इस कार्यक्रम में दो हजार बोरे शक्कर एवं गुड़ के चार ट्रक खर्च हो गये थे ।
- बालभोग ट्रेक्टर ट्रालियों के माध्यम से बांटा जाता था ।
- सैंकड़ों एवं हजारों की संख्या में तो व्यक्ति मात्र इससे अपना पेट ही भर रहे थे ।
- भण्डारे के लिये मुरैना जिले की चौरा तहसील में स्थित राम दास परमहंस के स्थान से गंगा जमुना नामक दो कड़ाही मंगवाई गई थी ।
- एक बार में एक कड़ाही में पचास बोरे आलू की सब्जी सुविधा पूर्वक बनाई जा सकती है ।
- इन कढ़ाईयों का आकार कितना बड़ा होगा, कल्पना की जा सकती है ।
- इन्हें क्या कढ़ाव कहना उचित होगा ।
- भंडारा मात्र के लिये एक हजार व्यक्तियों की टीम मुरैना जिले से आयी थी ।
- स्थानीय कार्यकर्ताओं को इसके बावजूद सहयोग करना पड़ा था ।
- इस भंडारे के अतिरिक्त यहां के बाजार में 17 भोजनालय ऐसे थे ।
- जहां पर पैसा देकर स्वरूचि भोजन प्राप्त किया जा सकता था ।
- 7 ट्यूवेल्स एवं आस-पास के सभी कुओं पर पंप लगाकर पूर परिसर में तीन इंच मोटी पाइप लाइन बिछाकर जगह-जगह पानी की व्यवस्था की गई थी ।
- हजारों की संख्या साधु-संत एवं नागाबाबा ही शामिल थे ।
- यज्ञ में लगने वाली अन्य दुकानों में हर तरह की मिठाई, फल, सब्जी से लेकर कपड़े,साडि़यों, जूतों तक की 700 दुकानें लगाई गई थी मंदिर के दोनों ओर पांच-पांच किलोमीटर की दूरी पर ही गाडि़यों को रूकवा दिया जाता था ।
भव्यता का अनुमान का दूसरा अंदाजा
- वहां से सिर्फ पैदल आने की अनुमति रहती थी ।
- टौला, रावतपुरा, बिजौरा गांव के लगभग एक हजार व्यक्तियों का कार्य सिर्फ पत्तले बिछाना, उठाना और फेंकना था ।
- इस यज्ञ में सिर्फ कार्यकर्ताओं की संख्या ही सिर्फ 10,000 से ऊपर थीं ।
- भण्डार ग्रह के लिये चार एकड़ के खेत में टीन शेड डालकर व्यवस्था की गई थी ।
- इसमें दो आटा चक्की, जो लगातार गेहूं पीस रही थी, लगाई गयी थी ।
- और एक आरा मशीन जो सतत् जलाउ लकड़ी तैयार कर रही थी, लगाई गयी थी ।
- इस विशाल और भव्य आयोजन के लिये विपुल धन-राशि कहां से आयी ?
- पांडे जी जो मुख्य कार्यकर्ताओं में से एक थे।
- बताते हैं कि ना सिर्फ भक्तों बल्कि hairan kar dene vale rochak tathya दान देने के प्रति भी एक उन्मादि जागरूकता देखने में आयी थी ।
- शक्कर गेहूं ,दाल, चावल, आदि सामग्रियों से भरे हुये ट्रकों के ड्राइवर बस इतना बता पाते थे कि भेजने वाले ने कहा था कि रावतपुरा जाकर खाली करवा देना ।
- इसी यज्ञ के दौरान एक बार नागपुर से चार ट्रक संतरे से भरे हुए आये जिन्हें मंदिर परिसर में खाली करवाया गया, तो संतरों का पहाड़ खड़ा हो गया ।
- जिसको जितना चाहिये के आधार पर की गई तर्ज पर जब इन संतरों को भक्तों में बांटा गया तो बारह घंटे के अंदर चार ट्रक संतरे खत्म हो गये ।
- एक कारीगर भगवानदास अहिरवार जो कि जिला छतरपुर के ग्राम मुखर्रा का है, के अनुसार इस महायज्ञ के प्रारंभ होने के लगभग एक महीने पहले से ही 150 मजदूर एवं 40 कारीगर दिन-रात एक कर के विभिन्न निर्माण कार्यो में लगे रहे थे ।
- इस यज्ञ के कुछ दिन पहले ही 27 फरवरी 1996 को राम दरबार की स्थापना के सम्मान में यह यज्ञ आयोजित किया गया था
मंदिर परिसर में भव्य यज्ञशाला
- यज्ञ हेतु मंदिर परिसर में ही एक भव्य स्थायी यज्ञशाला का निर्माण करवाया गया ।
- इस अनूठी यज्ञशाला में 9 हवन कुंड बनवाये गये, ये नव कुंड नवग्रहों के अनुसार रूप लिये हुए थे ।
- मंदिर परिसर के बाहर लगभग 10 फुट ऊँची घास-फूस की एक बेहद आकर्षक कुटिया बनायी गयी थी ।
- एवं उसी ऊँचाई पर एक आसन बनाया गया था ।
- इस आसन पर देवराहा बाबा का चित्र रखा हुआ था ।
- यहां आते और जाते लोग माथा टेक कर आगे बढ़ जाते ।
- इस यज्ञ में लगभग तीन करोड़ की राशि व्यय हुई थी ।
- जो विभिन्न सूत्रों में लागों ने दान स्वरूप या कार सेवा रूप में दी थी ।
- और इस यज्ञ में देश के 15 लाख व्यक्ति कोने-कोने से आकर सम्मलित हुए थे ।
- वह कौन सी वजह थी जिसने लोगों को इतनी विपुल राशि दान में देने हेतु प्रेरित किया ?
- गांव के इस विरान मंदिर में एकाएक इस हद तक आकर्षण कैसे बढ़ गया ?
- कि लाखों का हुजुम उमड़ पड़ा ? यज्ञ तो आमतौर पर कई स्थानों पर होते आयें हैं ।
- और इस यज्ञ का कोई खासतौर पर प्रचार भी नहीं किया गया था ।
- फिर लोगों पर धार्मिकता का ऐसा जुनून कैसे सवार हो गया कि, सभी तरह के मनुष्यों में तीर्थ-यात्रियों के दल, हिन्दु, मुसलमान, दरवेश, फकीर, साधु-सन्यासी, स्त्री, पुरूष, बच्चे पागलों की तरह इस यज्ञ में जैसे मिट्टी के गुब्बारों से बरस-बरस कर लाखों की तादाद में इकट्ठे हो रहे थे ?
- इन सभी बातों का एक ही जवाब मिलता है कि 1991 में आये तरूण संत की विलक्षण क्षमता और सहज सरल व्यवहारिकता ही इस महायज्ञ के मूल में ‘कारण’ बन कर छिपी हुई थी
आखिर इस यज्ञ में सभी व्यवस्थाएं संभाल कौन रहा था ?
- चौंकाने और अचरज वाली बात यह थी कि मात्र 25 वर्ष की अवस्था में कोई पुरूष इतना क्षमतावान कैसे हो सकता है कि उसकी एक आवाज में लाखों लोग उमड़ आए और करोड़ों की विपुल राशि हंसते-हंसते दान कर दें ।
- और फिर इतनी अद्भूद और गजब की करिश्माई संचालन क्षमता साधारण मनुष्य के बूते के बाहर की बात है ।
- तो यह क्या कोई देव मानव है ? इतने बड़े आयोजन में कहीं कोई कमीं नहीं, कोई दुर्घटना नहीं, कहीं कोई फसाद नहीं ।
- सब कुछ सहज ही सम्पन्न हो गया ।आखिरकार इस सफलता का श्रेय किसे जाता है ? क्या कोई परमशक्ति का ही अस्तित्व रहा होगा?
आइए इस यज्ञ में शामिल कुछ लोगों की बातें अगली भाग में सुनतें हैं । (द्वितीयोनास्ति से – संत श्री रावतपुरा सरकार का जीवन रहस्य , लेखक इंजीनियर: मंजुल मयंक रावत मंडलेश्वर )