Oxygen kaise banti hai | Medical oxygen क्या होती है ? कैसे बनती है ?

आज हम  Oxygen kaise banti hai के बारे में जानेंगे ।

जैसा कि आप सभी जानते हैं।ऑक्सीजन हमारे लिए कितनी आवश्यक है ।

जिसके बिना हम कुछ सेकंड भी नहीं जी सकते ।

ऑक्सीजन हम वायुमंडल या हवा से ग्रहण करते है ।

हमारे वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन तथा 1% अन्य गैसे विद्यमान  है ।

जैसे आर्गन, जिनोन, हीलियम, कार्बन डाइऑक्साइड, crypton आदि विद्यमान रहती है ।

जिसके कारण हमें वायुमंडल से पूर्णतः शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त नहीं होती हैं।

कोरोना मरीजों को सबसे ज्यादा सांस लेने में प्रॉब्लम इसलिए होती हैं ।

क्योंकि कोरोना का सबसे ज्यादा असर हमारे फेफड़ों पर पड़ता है ।

जिसके कारण कोरोना मरीजों को सांस लेने में दिक्कत होती है । हमारे फेफड़े रक्त का शुद्धिकरण करते है ।

फेफड़ों का मुख्य काम हवा से ऑक्सीजन लेकर उसे रक्त में प्रवाहित करना होता है ।

रक्त से कॉर्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर उसे बाहर निकालने का काम भी फेफड़े ही करते है।

जब फेफड़े सही से काम नहीं कर पाते तब हमें शुद्ध ऑक्सीजन की जरुरत पड़ती है ।

तब हमें शुद्ध ऑक्सीजन की जरुरत पड़ती है । जो कि ऑक्सीजन प्लांट में कृत्रिम रूप से बनाई जाती है ।

जिसे ऑक्सीजन cylinder के माध्यम से 95 से 99% तक शुद्ध ऑक्सीजन मरीजों को दी जाती है।

चूंकि वायुमंडल में धूल, मिट्टी, पानी या नमी के साथ ऑक्सीजन की मात्रा 21% तथा 78% नाइट्रोजन , 1% अन्य गैसे भी विद्यमान होती है ।

ऑक्सिजन में से बाकी अन्य गैसों तथा अशुद्धयों को अलग कर 99% तक शुद्ध ऑक्सिजन , ऑक्सिजन प्लांट में तैयार की जाती है।

फिर उन्हें cylinder के माध्यम से मेडिकल तथा स्टील उद्योगों में प्रयोग की जाती है ।

ऑक्सीजन जब हमारे चारों ओर की हवा में मौजूद है । तो हमें ऑक्सीजन कृत्रिम रूप से क्यों बनानी पड़ती है।

आज हमारे मन में सबसे ज्यादा प्रश्न यही उठता है कि हमारे आसपास इतनी ऑक्सीजन है ।

तो फिर इसे डायरेक्ट मरीजों को क्यों नहीं दी जाती । इसका उत्तर यही है कि हवा में मौजूद ऑक्सीजन पूर्णतः शुद्ध नहीं होती है ।

उसमे कई प्रकार की अशुद्धियां विद्यमान रहती है । जब हमें सांस लेने में दिक्कत होती है । तब हमें शुद्ध ऑक्सीजन की जरुरत पड़ती है । क्योंकि हमारे लंग्स (फेफड़े) सही से काम नहीं कर पाते ।

हमारे देश में लगभग 500 फैक्ट्री ऑक्सीजन प्रोडक्शन का कार्य करती है ।

कोरोना महामारी से पहले टोटल ऑक्सीजन उत्पादन का 15 फीसदी आक्सीजन का उपयोग अस्पतालों में तथा बाकी आक्सीजन का प्रयोग स्टील, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में किया जाता है।

कोरोना महामारी में 100 कोविड मरीजों में से 10 कोविड मरीज को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है ।

इसके चलते ऑक्सीजन की डिमांड में काफी वृद्धि हुई है। भारत में अधिकतर मौतें सही समय पर ऑक्सीजन ना मिल पाने के कारण हो रही है ।

क्योंकि आक्सीजन का उत्पादन उसकी खपत की तुलना में काफी कम है ।

स्वस्थ मनुष्य को ऑक्सीजन की कितनी जरूरत होती है ?

सामान्यतः मनुष्य को बिना कार्य के 7 – 8 litre /minute ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है ।

इसका मतलब हर दिन हम 11000 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है ।

एक्सपर्ट के अनुसार

प्रत्येक मनुष्य को हर घंटे 550 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है ।

Oxygen level kaise check karein ?

जैसा की आप सभी जानते है । अभी कोरोना महामारी का कहर देश, दुनिया में चल रहा है । ऐसे में यदि हम कोरोना से संक्रमित होते है तो हमें सबसे ज्यादा डर ऑक्सीजन लेवल के गिरने का होता है । घर पर ही हमें आइसोलेट होना होता है ।

ऐसे में यह नहीं पता होता कि हमें हॉस्पिटल कब जाना है ? कब हम ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है ?

घर पर ऑक्सीजन कैसे चेक करें ?

Pulse Oximeter यह एक छोटी सी डिजिटल display डिवाइस है ।

इसे हम ऑनलाइन या फिर मेडिकल से भी खरीद सकते है । और घर पर ही ऑक्सीजन लेवल चेक कर सकते है ।

Pulse Oximeter का उपयोग ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल तथा पल्स रेट चैक करने के लिए किया जाता है ।

ऑक्सीजन सेचुरेशन का मतलब हमारे शरीर में लाल रक्त कणिकाएं (RBC) कितना ऑक्सीजन एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा रही है । ब्लड में ऑक्सीजन का प्रवाह कितना है यह बताता है । यह हमें बताती है । Pulse Oximeter के ऊपर लगा display हमें हमारे शरीर में ऑक्सीजन लेवल तथा पल्स रेट दिखाता है ।

इसे देखने के लिए हमें Pulse Oximeter ko अपनी उंगली में लगाना होता है । कुछ ही सेकंड में Pulse Oximeter Oxygen saturation तथा pulse rate ऊपर display mein dikha देता है । ऑक्सीजन लेवल 95 से ऊपर है तो टेंशन की कोई बात नहीं है यदि ऑक्सीजन इससे नीचे जाता है । तो फिर हम अलर्ट होने की जरूरत है । ध्यान रहे अपने doctor से सही सलाह लेकर ही कोई निर्णय लें । टेंशन लेने की जगह अपने doctor से सलाह ले। वह आपको बताएंगे किंकन आपको हॉस्पिटल जाना है । या आपको ऑक्सीजन की जरूरत कब पड़ सकती है ।

ऑक्सीजन सिलेंडर

Hospital में oxygen पहुंचाने के लिए ऑक्सीजन cylinder का use किया जाता है।

हालांकि कुछ हॉस्पिटल्स में ऑक्सीजन टैंक में स्टोर की जाती है ।

फिर पाइप के जरिए मरीजों के बेड तक पहुंचा दी जाती है । इस facilities ke बावजूद आज भी ऑक्सीजन cylinder का महत्व कम नहीं हुआ है ।

बहुत से hospital में आज भी cylinder ka यूज़ किया जाता है ।

कोरोना काल में तो ऑक्सीजन cylinder ही एक मात्र सहारा है ।

क्योंकि कई hospital में बेड खाली नहीं है । ऐसे में परिजन किसी प्रकार से oxygen cylinder की व्यवस्था कर मरीजों को घर पर , कार में , रोड पर, ज़मीन पर ऑक्सीजन देने के लिए मजबूर है ।

क्योंकि कोरोना मरीजों को आज सबसे ज्यादा सांस लेने में दिक्कत हो रही है ।

देश के हालात किसी से छिपे नहीं है। कई घरों के चिराग सिर्फ़ इसलिए बुझ गए क्योंकि उन्हें सही समय पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाई ।

2015 में ऑक्सीजन को ज़रूरी दवाओं की सूची में शामिल कर लिया गया है ।

परन्तु ऑक्सीजन का प्रोडक्शन हमारे देश की जनसंख्या के मुकाबले बहुत कम है । जिसके कारण आज हमारे देश के हालात गंभीर है ।

Oxygen cylinder capacity in hindi

7 क्यूबिक मीटर वाले cylinder का उपयोग hospitals mein किया जाता है ।

ऑक्सीजन cylinder की hight 4 फुट , 6 इंच की होती है ।

जिसमें 47 लीटर ऑक्सीजन भरने की क्षमता होती है । प्रेशर के साथ 7000 लीटर तक ऑक्सीजन cylinder mein भरी जाती है ।

जो एक मरीज को लगातार 20 घण्टे तक ऑक्सीजन देने में सक्षम होती है ।

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cryogenic distillation process in hindi

वायुमंडल में उपस्थित आक्सीजन से मेडिकल ऑक्सीजन तथा इंडस्ट्रीयल ऑक्सीजन का निर्माण किया जाता है ।

जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा है कि वायुमंडल में 21% ऑक्सीजन ही उपस्थित है । बाकि अन्य गैसे तथा धूल, मिट्टी आदि अशुद्धि भी वायुमंडल में मौजूद है ।

हमारे चारों ओर मौजूद हवा में से ऑक्सीजन को cryogenic distillation process के द्वारा हवा से ऑक्सीजन अलग करते है ।

इस प्रक्रिया में सबसे पहले हवा को फिल्टर किया जाता है । ऐसा करने पर हवा में मौजूद धूल, मट्टी, आदि अशुद्धियां हवा से अलग की जाती है ।

इसके बाद कई स्टेप में हवा को कंप्रेस किया जाता है ।  फिर मोलेक्यूल छलनी adsorbere से गुजार जाता है। ताकि कार्बनडाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, पानी आदि हवा से अलग हो सके ।

कंप्रेस हो चुकी हवा डिस्टिल कॉलम में भेज दी जाती है। जहां पर इसे ठंडा किया जाता है।

चूंकि हर गैस का अपना बॉयलिंग प्वाइंट होता है । जिस ताप पर गैस लिक्विड में बदल जाती है।

हवा को -183°c पर ठंडा करने पर ऑक्सीजन लिक्विड में बदल जाती है ।

-196°c पर ठंडा करने पर नाइट्रोजन लिक्विड में बदल जाती है।

उसी प्रकार -186°c आर्गन गैस लिक्विड में बदल जाती है।

इस प्रक्रिया को अलग अलग स्टेप में दोहराया जाता है। जिससे नाइट्रोजन, आर्गन आदि को अलग कर लिया जाता है।

तथा -183°c पर oxygen liquid  में परिवर्तित हो जाती है । यह ऑक्सीजन 99% तक शुद्ध होती है । जिसका उपयोग मेडिकल purpose के लिऐ किया जाता है ।

अब लिक्विड में परिवर्तित आक्सीजन को ठंडे क्रायोजेनिक टैंकरों में डिस्ट्रीब्यूटर तक पहुंचाया जाता है।

डिस्ट्रीब्यूटर लिक्विड ऑक्सीजन का प्रेशर कम करके उसे वापस गैस में बदल कर सिलिंडर में भरकर hospital तक पहुंचा देते है।

ऑक्सीजन बनाने की PSA (Vaccume Swing Adsorption process) technique

Vaccume Swing Adsorption proces

Vaccum Swing Adsorption process में oxygen 93-95% तक शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होती है ।

PSA oxygen generation process

  1. सबसे पहले वायुमंडल से हवा को air compressor में स्टोर किया जाता है । जहां पर हवा को compress किया जाता है ।
  2. तत्पश्चात हवा को air filter या air dryer से गुजारा जाता है। ताकि हवा में मौजूद नमी, धूल मट्टी आदि के कण PSA generator तक ना पहुंच पाए ।
  3. अब हवा को pressurised tank पहुंचाया जाता है । हवा से ऑक्सीजन निकालने के लिए दो pressurised tank का use किया जाता है ।
  4. जिसमें ziolite molecular sieve का यूज़ adsorbent material के तौर पर किया जाता है । ziolite molecular sieve नाइट्रोजन का अवशोषण कर लेता है । जिससे हमें शुद्ध air ऑक्सीजन प्राप्त हो जाती है । जिसे हम बाहर निकाल कर medical or industrial purpose के लिए यूज़ किया जाता है।

PSA technique mein दो pressurised tank का use करने के पीछे का कारण यह है कि पहली बार में एक टैंक में प्रेशर बढ़ा कर नाइट्रोजन और ऑक्सीजन को अलग किया जाता है।

pressure के कारण नाइट्रोजन ऑक्सीजन की तुलना में ziolite molecuar sieve ki तरफ ज्यादा आकर्षित होती है । जिससे नाईट्रोजन का अवशोषण हो जाता है ।

तथा tank में शुद्ध ऑक्सीजन रह जाती है । जिससे ऑक्सीजन को स्टोर कर लिया जाता है । और नाईट्रोजन को हवा में वापस छोड़ दिया जाता है ।

जब तक एक tank खाली होता है । तब तक दूसरे टैंक में यही प्रोसेस को दोहराया जाता है ।

ताकि काम टैंक खाली करने का इंतजार ना करना पड़े । यह प्रक्रिया एक के बाद एक दोहराई जाती है ।

जिससे हमें शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होती रहती है ।

नोट

PSA technique से प्राप्त ऑक्सीजन की शुद्धता 93% to 95% तक रहती है । जबकि मेडिकल लिक्विड ऑक्सीजन की शुद्धता 99% तक होती है ।

केमिस्ट्री इंपोर्टेंट फॉर्मूला