Contents
- 1 जो सोचोगे वही पाओगे (Law of Attraction)
- 2 सोचना क्या चाहिये और क्या सोचते हो
- 3 जैसा सोचो, वैसा क्यों नहीं होता ?
- 4 आगे बढ़ने में प्रोत्साहन जरूरी है ।
- 4.1 मुहावरे या कहावतों से अर्थ की स्पष्टता
- 4.2 जिंदगी भ्रम में जीना
- 4.3 सद्बुद्धि से सत्य कर्म का होना
- 4.4 चेतन और अवचेतन मन का सार
- 4.5 नव निर्मित सकारात्मक ऊर्जा से ही निर्माण
- 4.6 नेगेटिव और पॉजिटिव ऊर्जा का जीवन में प्रभाव
- 4.7 काम करने का अंदाज बड़ा होना चाहिए
- 4.8 सफल होकर दिखा दो, लोगों का नजरिया बदल जाएगा ।
- 4.9 अच्छी आदतें जिंदगी बना देती है ।
- 4.10 अपनी ऊर्जा और व्यक्तित्व का अस्तित्व स्वयं को बनाना होता है
- 4.11 सारांश
जो सोचोगे वही पाओगे (Law of Attraction)
जो सोचोगे वही पाओगे, समाज के वातावरण में सामान्यत: ऐसा देखने में आया करता है। आज हर व्यक्ति अपना प्रतियोगी अपने इर्द-गिर्द पाता है । उसका कोई भी प्रतिद्वन्दी ना रहे वह ऐसा भी सोचकर जिंदगी जी रहा है ।
यह भी देखने को मिलता है ।
बहुत गहरा चिंतन युक्त किंतु शास्वत सत्य यह भी है।
हर व्यक्ति अपनी सफलता एवं बदलाव के बदले में समाज में दूसरे लोगों से अपनी प्रसन्नता सुनना चाहता है ।
उसे यह भी सदैव ऐहसास होते रहता है कि वह सभी लोगों में सबसे हटकर है ।
वह स्वयं ही अद्वितीय है । उसकी कोई तुलना नहीं है ।
और वह, यह दूसरों से अपनी तारीफ में सुनना भी चाहता है ।
वह चाहता है कि जो वह स्वयं के बारें में सोचता है पूरा होगा ।
किंतु यह भी एक कड़वा परंतु वास्तविकता को लिये हुए सत्य है ।
जो उस व्यक्ति के कर्मों का श्रृंगार करता है ।
किसी व्यक्ति की सामान्य बुद्धि का आकलन करने पर स्पष्ट होता है कि वह सदैव अपने लिये ही सब कुछ चाहता है ।
यहां पर “वही होगा “ से लेखक यह कहना चाहता है ।
कि आप जैसा सोचते हो, वैसा ही होता है ।
एक बहुत ही गंभीर किंतु खास तथ्य जो मनुष्य प्रजाति की सोच का सफलता पूर्वक परीक्षण करने पर सामने आया ।
परीक्षण में जाने पर एक आश्चर्य यह भी समझने में आता है कि व्यक्ति स्वयं ही ऐसा सोचता है कि जो सोचोगे वही हो जाएगा ।
इसे वह अपने विश्वास में तथा अंत:करण की क्रिया में सदैव बनाये रहता है ।
तब कहीं उसे अपने द्वारा किये गये कर्मों से जो उत्तर प्राप्त होता है, उसमें वह अपनी विश्वसनीयता बनाये रहता है ।
यह विश्वश्नीयता उस व्यक्ति का आत्मचिंतन का कारण बन जाती है ।
सोचना क्या चाहिये और क्या सोचते हो
मनुष्य की विचारों की शक्ति जब उसकी इच्छाशक्ति में परिणीत होती है तो वह जो चाहे वह कर सकता है ।
एक बहुत गंभीर विषय जो सोच के बारें में अक्सर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देता है।
क्या हकीकत में सोच ही इच्छा शक्ति होती है ?
यहां इसका विपरीत भी स्पष्ट समझ में आता है। इच्छा शक्ति से ही सोच का अग्रसर होना एवं निर्मित होना भी निश्चित होता है ।
अध्यात्म के क्षेत्र के विद्वानों ने भी इस विषय में गहन गंभीर रूप से स्पष्ट की है ।
बहुत से महापुरूषों एवं विद्वानों ने भी यही इच्छाशक्ति जो सोचोगे वही पाओगे, के विषय में बहुत खूब लिखा है ।
यदि हम कुछ हटकर अपने विचारों को किसी परीक्षण के लिये प्रयोगशाला बना लें ।
तो इस प्रयोगशाला में निश्चित ही प्राप्त होने वाले परिणाम इच्छाशक्ति ही आयेंगे ।
यहां लेखक यह कहना चाहता है कि विचारों का इच्छाशक्ति से बहुत गहरा संबंध होता है ।
सहज ही इसे नहीं समझा जा सकता ।
साधारणतया हर मनुष्य ऐसा महसूस कराता है कि मानों वह बहुत ही सरलता से सब कुछ समझ गया है । दूसरी एक बात और भी प्रतीत करायी जाती है । कि समझने वाले भी दूसरों को ज्यादा ही समझा देते है ।
ज्ञान की प्रयोगशाला में जब समझने और समझाने जैसे तथ्यों का परीक्षण किया जाता है तो निष्कर्ष अलग आते है ।
जैसे समझने वाले प्राय: बहुत कम समझते है किन्तु दूसरों को ज्यादा समझाते हुये नजर आते है ।
समाज एवं हमारे वातावरण में ज्ञान की प्रयोगशाला में परीक्षण करने पर ही यह निष्कर्ष सामने आते हैं ।
यहां पर आकर प्राय: यह देखने में आ रहा है कि व्यक्ति सिर्फ एक गुत्थी में उलझकर रह रहा है ।
जैसा सोचो, वैसा क्यों नहीं होता ?
हकीकत में उस व्यक्ति को स्वयं इस बात का अहसास नहीं हो पाता है कि जो सोचता है ।
पूर्णत: नहीं किंतु बहुत कुछ उसके अनुसार ही होता रहता है
यह रहस्य का नियम भी साबित करता है ।
वही हो रहा है जो आप कभी सोच रहे होते थे ।
अक्सर ऐसा अनुभव किया जाता रहा है कि व्यक्ति के जीवन की हर परिस्थितियों का जिम्मेदार उसका खुद का कर्म होता है ।
यहां पर बहुत ही गहन गंभीर एवं रहस्यात्मक तथ्य का जन्म हो जाता है ।
जो तथ्य यह बताते है कि व्यक्ति का निर्माण उसकी सोच से ही होता है ।
देखा जाता है कि जिस प्रकार भी व्यक्ति की सोच होती है, उसकी भावना उसी के इर्द-गिर्द पनपती है ।
यह भी सत्य है कि भावना एवं सोच का बहुत गहरा संबंध होता है ।
जब भावनाएं उत्प्रेरित होती है तो जीवन में निश्चित ही बहुत ज्यादा बदलाव आ जाता है ।
यह उत्प्रेरण जो किसी ना किसी भावनाओं को जाग्रत करने का मंत्र है , अवश्य काम करता है ।
कभी-कभी तो ऐसा भी देखने में आता है कि व्यक्ति स्वयं ही स्वयं के बारे में नहीं बता पाते है।
किंतु दूसरों के बारें में अच्छा खासा बयां कर देते हैं कि जो सोचोगे वही पाओगे
यहां तक कि उनका भविष्य बता देते हैं ।
भले ही बाद में वह सही निकले या ना निकले ।
दूसरी तरफ यह भी देखने में आता है जो अक्सर सही भी है कि दूसरों के बारे में कुछ नहीं जानते ना बता सकते
किंतु स्वयं के बारे में जो बोलते है वह कर के भी दिखाते हैं ।
आगे बढ़ने में प्रोत्साहन जरूरी है ।
यह भी निश्चित है कि जो स्वयं के बारे में बोला जाता है कि, जो सोचोगे वही पाओगे।
और यदि वह पूरा नहीं हो पाया तो समाज में उसे असफल घोषित कर दिया जाता है ।
यहां तक कि उसे भय/डर का सामना भी करना पड़ता है ।
उन लोगों को जो उसे चाहते तो विचारों की चिंगारी के माध्यम से सफल बना सकते थे।
किंतु उसे किसी कि कोई मदद नहीं मिली ।
जब हम यह कहते है कि किसी के आगे बढ़ने में उसका उत्साहवर्धन निश्चित ही आवश्यक होता है ।
किसी को आगे बढ़ाने में मात्र उसे यदि प्रोत्साहित किया जाये।
तो भी वह अपने आत्मबल की ताकत से आगे बढ़ ही जाता है ।
किसी व्यक्ति या विद्यार्थी या फिर किसी भी प्रकार का प्रतियोगी हो उसमें ताकत बढ़ जाती है ।
प्रोत्साहन किसी को भी हिम्मत एवं बल देता है ।
नयी ऊर्जा भी व्यक्ति में मानों की जन्म ले रहीं होती है ।
हिम्मत और साहस के चलते ही व्यक्ति ने साबित कर दिखाया है कि जो वह सोचता है उसे कर ही देता है ।
सफलता किसी की मोहताज नहीं होती ।
यह सुनने में ज्यादातर लोगों को ऐसा लगता है कि यह सिर्फ एक कोटेशन है या डॉयलॉग ।
कर्मवीरों में कर्म भूमि पर खड़े होकर सदैव अपनी जिद्द को पूरी कर दिखाया है ।
उन्होंने कथनी और करनी में अंतर नहीं होता है, यह भी करके दिखा दिया है ।
सामान्य लोगों में ऐसे अद्वितीय लक्षण धोखे से ही देखने को मिलते हैं ।
इसका कारण यह है कि बोलने वाले प्राय: कर नहीं पाते।
जो वे करने की बोलते है और करने वाले बगैर बोले ही वो कर जाते है ।
जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं किया होता है । यह कि जो सोचोगे वही पाओगे।
मुहावरे या कहावतों से अर्थ की स्पष्टता
जिस व्यक्ति ने यह कर दिखाया होता है वो ही इस बात को स्वीकार कर सकता है कि हां अद्भूत होताहै।
जैसे सामान्य व्यक्ति को ऐसा कहते सुने की “मैं तुम्हारे लिये आसमान से तारे तोड़ कर जमीं ला सकता हूं।“
यह सत्य नहीं हो सकता ।
क्योंकि मुहावरे या कहावते सिर्फ किसी अर्थ को स्पष्ट करने के लिये प्रयोग किये जाते है ।
किसी शैली को सरल एवं सुस्पष्ट करने के लिये किये जाते है ।
कोई भी भावार्थ या किसी प्रसंग के अर्थ को सहज ही समझने आसान नहीं होता ।
इसे बनाने के लिये भी उपर्युक्त उद्हरण चिन्ह “के अंदर लिखे हुये वाक्यों जैसा उपयोग किया जाता है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसे लोग से हम मिल सकते है ।
जो बोलते है वे करके दिखाये, इनके बारे में हम पढ़ सकते है ।
निश्चित ही आप भी यह अनुभव करते ही होंगे ।
जो हम बार-बार बोलते है, हमारी सोच के अनुसार ही बोल पाते है ।
इसका विपरीत भी निश्चित ही सत्य होता है कि जैसा हम सोचते है वैसा ही बोलते है ।
यहां पर आकर बहुत कम लोग ऐसा जान पाते है कि शब्द ही हमारे वो बीज बनते है ।
जिनसे निर्मित पेड़ ही हमें फल देता है ।वहीं कहा जाता है कि जो सोचोगे वही पाओगे ।
पौधा पहले बना फिर समय बीतने के पश्चात् वह पेड़ बन गया ।
यहां पर हमने बहुत कम लोग ही ऐसा जान पाते है।
क्योंकि वास्तव में पूरी दुनिया में बहुत कम प्रतिशत में लोगों ने प्रूफ कर दिखाया है ।
एक बहुत बड़ा जादू है, हमारा वह वाक्य जिसका जन्म हमारे विचारों से होता है ।
यह भी निश्चित है कि विचार हमारे अस्तित्व की जननी होते हैं ।
जिंदगी भ्रम में जीना
अधिकांश लोग इस विश्वास के साथ जिंदगी जी रहे होते है कि वे मस्त है ।
उनका यह भी मानना होता है कि उन्हें सब पता होता है ।
इस बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि उन्हें सब पता होता है ।
लेखक महोदय यहां किसी खास या विशेष को ताना या इशारा नहीं कर रहा है ।
वह तो, यही बताने का प्रयास कर रहा है कि आपके पास भी वो अनुभव है ।
जिस दृष्टि से लेखक ने समाज में बहुत सी बातों का अनुभव किया है ।
वह आपके पास भी है ।
वह सिर्फ उन समस्त बातों एवं अनुभव से उस विशेष मंत्र को ढूंढ़ लेता है।
जो आपके लिये जीवनोपयोगि है ।
जैसे आप स्वयं को भी ऐसा कहीं ना कहीं लगता ही होगा।
जैसा आप जो सोच रहे है वह पूरा नहीं हो पा रहा है ।
किंतु हमारे चहुं ओर वो हो रहा है जो हम सोच रहे थे ।
हमारे अस्तित्व की ऊर्जा इतनी ज्यादा रहती है ।
जो हम सोचते है ,वह दूसरों को पूरा करते देखते हैं ।
यहां पुन: यह प्रश्न चिन्ह हमारे सम्मुख लग जाता है कि ऐसा क्यों होता है ?
बहुत सरल एवं स्पष्ट है । इसे हम इतिहास के उस उदाहरण से समझने की कोशिश करेंगे ।
एक शिष्य एकलव्य ने गुरू प्रतिमा अपने सम्मुख रखकर प्रणाम कर, साधना किया।
विद्या हासिल की एवं धर्नुविद्या में पारंगत होकर इतिहास बना डाला ।
शास्त्रों में भी उसे हम और आप पढ़ते है ।
प्रमाण भी इस बात को उजागर करते है कि वह शिष्य ऐसा सोचता था ।
आखिरकार वही हुआ, जो उसने सोचा था ।
उसकी सोच उसके कर्मों के अनुसार पनपती गयी ।
सद्बुद्धि से सत्य कर्म का होना
किंतु प्रश्न यह उठता है कि सोच के साथ-साथ क्या कर्म होते गये थे ।
या फिर कर्म अग्रेषित होते गये सोच का दायरा बाद में हम लोगों तक पहुंचा ।
शास्त्रों, पुराणों और उपनिषदों में भी हमने यही पाया है।
अधिकांशत: जिस पात्र ने जो भविष्यवाणी की है, वह पूर्ण होती चली गयी है ।
चाहे श्री कृष्ण ने इधर अर्जुन और उधर दुर्योधन को जैसा कहा वैसा हुआ है ।
चाहे श्री रामचन्द्र जी ने लक्ष्मण जी और विभीषण जी से जो कहा था, वही प्रसंग और संदर्भ में पढ़ने में और रामायण के अध्ययन से पता चलता है ।
फिर चाहे बुद्ध की शिक्षा ही क्यों न हो ।
चूंकि ज्ञान किसी मनुष्य का सर्वोपरी गुण कहलाता है ।
अत: भगवान बुद्ध ने भी पूर्ण ज्ञान कैसे प्राप्त हो जाता है, संदेश देश को और समाज को दिया है ।
यहां पर आकर व्यक्ति स्वयं को इतना परिपक्व बना लेता है कि वह स्वयं ही अपने आत्मबल की शक्ति से आत्मज्ञान अर्जित कर लेता है ।
हम यह कहना चाहते है कि आंखे खोलकर और सतर्क होकर यदि हम इतिहास के पन्नों पर नज़र डाले तो आज भी इतिहास दोहरा रहा है ।
बस, पात्र बदल गये है ।
उद्देश्य निजस्वार्थ और किसी भी प्रकार से सिर्फ अपने जीवन को खुशहाल बनाने का ही समझ में आता है ।
शास्त्रों में हमने ऐसा अध्ययन किया है कि भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में वर्तमान में ही ऋषि, मुनि और महात्माओं ने आगे की परिस्थतियों और कठिनाईयों के बारे में आगाह कर दिया होता था ।
वे बता देते थे कि फलां-फलां स्थान पर ऐसा कुछ होने वाला है और उनकी आंखों में दिखता भी था ।
चेतन और अवचेतन मन का सार
यहां पर आकर हम मात्र संजय अकेले की ही बात नहीं कर रहे है । बताने के उद्देश्य का सार सिर्फ इतना है कि आज आप और हमारे साथ हो वही रहा है जो कभी हमने चेतन्य अवस्था में ध्यान किया था ।
ये बात और है कि हमार अवचेतन मन कब कौन सी बात को किस रूप में स्वीकार कर लेता है, हमें पता ही नहीं चलता है ।
यह भी सत्य है कि अचानक कोई दु:ख या सुख यदि जीवन में दर्शन देते है, तो कारण अवचेतन मन की शक्ति के द्वारा ही हमें सब मिलता है ।
बड़े-बड़े ज्ञानियों और दार्शनिकों ने तो यहां तक रहस्यों को खोज निकाला है कि कैसे जो बोलते हो, वह वास्तव में हो जाता है ।
हकीकत में यदि हम साइंस की दृष्टि से देखें तो हर वो waves जो आपके शरीर से निकलकर ब्रह्माण्ड तक पहुंचती है ।
वह वापस भी कहीं ना कहीं अवश्य आती है क्योंकि ब्रह्माण्ड निश्चित है ।
हमारे अपने विचारों में सोच भी शामिल होती है इस सोच में निश्चित है ऊर्जा भी होती है और पूरा ब्रह्माण्ड ऊर्जा से व्याप्त है !
अतएव यदि उन waves में ऊर्जा है और वह किसी ऊर्जा में ही जाकर मिल जाती है तो यह भी निश्चित है कि वह सिर्फ एक ऊर्जा ही तो हो जाती है ।
फिर उसका व्यापीकरण एक बिन्दु से किसी भी बिन्दु तक स्वाभाविक है होता ही है ।
किसी मूल बिन्दु से ब्रह्माण्ड में उस अनंत बिन्दु तक जो ऊर्जा वितरित होती है ।
यह फिर एक ही तो ऊर्जा हो जाती है ।
अतएव हम स्वयं भी उस ब्रह्माण्ड के ही तो अंश होंगे चाहे किसी एक छोटे से बिन्दु से भी बहुत ही ज्यादा छोटे होंगे ।
नव निर्मित सकारात्मक ऊर्जा से ही निर्माण
जिसे शायद कणों से भी बहुत ज्यादा छोटा मान सकते है ।
यह भी तो आखिरकार ऊर्जा युक्त ही होता है ।
इसलिये इसे विज्ञान ने भी मान्यता दी है कि हम जो बोलते है वह किसी ना किसी रूप में, कहीं ना कहीं अवश्य ही होता है ।
यहीं पर आकर तो लेखक ने ऐसा कह दिया है कि Power of Spoken Words का बहुत ज्यादा प्रभाव हमारे जीवन में पड़ता है ।
अक्सर ऐसा देखा जा रहा है कि आपके बोल, आपको अपने अनुसार ही बनाते है ।
फिर वही कहेंगे, क्योंकि कहीं आप भूल ना जाये ।
जो आप के साथ घटित हो रहा है उसके जिम्मेदार आप स्वयं ही तो है ।
इसे बहुत सरल रूप से साबित किया जा सकता है ।
मानकर चलिये की आप किसी चीज़ के हकदार होते है तो वह चीज़ आपके सुख या दु:ख का कारण सिर्फ उस समय ही बनती है जब आप उसे उसी रूप में प्रयोग करते है ।
जैसे एक गाड़ी जो आपको गंतव्य स्थान तक पहुंचाती है ।
तो यह आपके ज्ञान की सही दिशा में और दिग्दर्शिका के अनुसार चलती है ।
किंतु यदि यह दिशा विहीन और अज्ञानता के साथ चलायी जाती है ।
तो यह उस समय दु:ख का कारण भी बन जाती है जब इस गाड़ी से दुर्घटना हो जाती है ।
अब किसी दार्शनिक ने उस गाड़ी वाले से यदि ऐसा कहा था कि आप संभलकर चलना ।
तब उसकी बात गाड़ी का एक्सीडेंट होने पर यह साबित करती है कि वह दार्शनिक ने संभलकर चलने को इसलिये कहा था कि वह एक्सीडेंट का कारण जानता था या उसे उम्मीद थी ।
लेकिन यदि उसका एक्सीडेंट नहीं होता है । तो ऐसा माना जा सकता है ।
नेगेटिव और पॉजिटिव ऊर्जा का जीवन में प्रभाव
उसका यह अपना अनुभव भी व्यक्त किया जा रहा था ।
कि उस दार्शनिक के बोलने की वजह से ही वह दुर्घटना टल गयी जो होने वाली थी ।
इन दोनों बातों में गाड़ी चलाने वाला की अपनी ऊर्जा जो उसने स्वीकार किया था ।
और उस दार्शनिक ने जिस रूप से उसको कहा था उसकी ऊर्जा दोनों ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गयी और परिणाम जो भी था, वह देखने को मिल गया ।
बहुत जबरदस्त और उत्साह से भरा एक विचार जो इस बात को सिद्ध करता है कि कब एक्सीडेंट नहीं हुआ और कब हो सकता था ।
यदि दार्शनक और गाड़ी चलाने वाले के विचार अनुकूल एवं समपक्ष में है तो सकारात्मक परिणाम मिलेगा ।
और यदि प्रतिकूल एवं विषम पक्ष में उनकी ऊर्जायें (विचार) होती है तो नकारात्मक परिणाम इस दृष्टांत के सम्मुख होगा ।
अब सिर्फ इतना ही समझने का प्रयास करना होगा !
और वह भी पूर्ण विश्वास, आस्था और श्रद्धा के साथ की हम आज जो भी कर रहे है !
वह हमारे विचारों के द्वारा ही हमसे करवाये जा रहें है अन्यथा संभव ही नहीं हो सकता था जो आज हम कर रहे है , वह कर पाते ।
और भी स्पष्ट इस बात से हो जाता है कि बहुत से ऐसे काम है जो हम निश्चित है कर पाते, किंतु हमने उन्हें करना पसंद ही नहीं किया ।
और यह भी निश्चित है कि बहुत से नापसंदी कार्य जो शायद आज हम कर रहे है, वह हमारे पसंदीदा कार्य बन चुके है ।
हमारा शौक बन चुका है ।
उस कार्य को करने में हमें बेहद प्रसन्नता एवं आनंद प्राप्त होता है ।
यदि हम ध्यान से सोचें तो एक निष्कर्ष हमारे सामने उभर कर आता है कि जो कार्य हम सपने में भी करना नहीं चाहते है |
काम करने का अंदाज बड़ा होना चाहिए
उसे हमारे सभ्य समाज का कोई सामान्य सा मनुष्य कर रहा होता है ।
तो फिर ऐसा क्या था कि वह यह कर रहा है
उसे इस कार्य को करने में आनंद आ रहा है ।
उसे बहुत खुशी उस कार्य को करने से मिलती है ।
वह सदैव उसी कार्य को अपना पसंदीदा कार्य मान बैठा है ।
वह कार्य उस मनुष्य के जीवकार्जोपाजन बन गया है ।
जो कार्य सामने वाले के लिये सर्वश्रेष्ठ है उसे हम अच्छा नहीं मानते और ऐसा कह देते है कि यह कार्य हमारे लायक नहीं है ।
इसे करने में हमें मजा नहीं आता है ।
काम को मजेदार होना चाहिये ।
कुछ सोच समझकर ही कार्य को अपने हाथ में लेना चाहिये ।
यहां पर आकर यह तो स्पष्ट हो चुका है कि हमारे साथ हो वही रहा है जो हम सोचते है ।
कितना विचित्र और अद्भूद ऐहसास किया जा सकता है ।
कि क्या ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का वह प्रकार और उतनी मात्रा जिसके अनुकूल हमारी अपनी ऊर्जा होती है ।
हम उसी ऊर्जा के द्वारा और उसी कार्य को कर पाते है जो हमसे ब्रह्माण्ड स्वयं करवा देता है ।
इसलिये तो ऐसा कहा जाता है कि जैसा सोचोगे वैसा ही होगा ।
और ऐसा भी अक्सर हम और आप सुनते है कि व्यक्ति की आदते उसके सोच के परिवेश में ही पनपती है ।
उसका परिवेश उस व्यक्ति की उस ऊर्जा से ही निर्मित होता है जो ऊर्जा उसके विचारों से बनती है । अर्थात् उसके विचार ही उसकी ऊर्जा का प्रकार बताते है ।
तभी तो हम यह सुनते आ रहे है कि नकारात्मक ऊर्जा होगी तो सकारात्मक कार्य कैसे होंगे ।
सफल होकर दिखा दो, लोगों का नजरिया बदल जाएगा ।
यदि कोई सफल होता दिखता है तो कैसे नकारात्मक लोगों के नजरिये भी उस समय बदल जाते है
जब वे यह साबित कर देते है कि विपरीत बातें, पक्ष में अनुकूलतम स्थिति बनकर कैसे आ जाती है ।
और आदमी पक्ष में कैसे बोलने लगता हमने तो ऐसा सुना था ।
कि दुनिया में लोगों की मत सुनों । यहां पर रहने वाले जितने लोग है उतने उनके विचार होंगे । Definitely उन विचारों के अनुकूल ही उनके व्यवहार और ऊर्जाये होंगी ।
किसी ने कहा था कि दुनिया में रहने वाले लोगों को सुनोगे, तो खुद की सुनना भूल जाओगे ।
एक व्यक्ति ढोल का पोल था । वह ऐसे की उसने किसी से किसी के बारे में कुछ नकारात्मक बातें कह दिया था ।
और वह जिसके बारें में कहा था वह बातें सकारात्मक रूप से उस व्यक्ति ने साबित कर दिया ।
जिस व्यक्ति ने उस एक व्यक्ति की बात सुनी थी तो वो व्यक्ति जो सुनने वाला था ने सुनाने वाले से कहा था कि आपके अनुसार ऐसा तो नहीं हो पाया जैसा आप नकारात्मक कह रहे थे ।
बल्कि वह तो सकारात्मक परिणाम को साबित करके दिखाया ।
आपकी बात गलत साबित हो गयी तब वह कहने वाला व्यक्ति ने बड़ा सुन्दर सा जवाब देत हुये और स्वयं को सही साबित करते हुये कहा कि “मै तो ऐसा ही कह रहा था । “
मुझे तो मालूम था कि वह सब कुछ कर सकता है ।
समझ में यह नहीं आ रहा है कि लोगों का नज़रिया मात्र चंद पल के लिये, या कुछ क्षणों के लिये अपने को सही साबित करने के लिये सकारात्मक हो जाता है ।
या फिर हमेशा के लिये वे सकारात्मक हो जाते है ।
अनुभव तो यह कहता है कि व्यक्ति की आदते नहीं बदलती है ।
अच्छी आदतें जिंदगी बना देती है ।
जिनकी आदते बदल जाती है ।
उनकी किस्मते भी उनकी आदतों को अच्छा बनाने में ऊर्जा को रूप में आकर उनकी मदद करती है । और वे फिर एक दिन निश्चित ही अपना परिवर्तन समाज के सामने प्रस्तुत कर देते है ।
ये लोग ढोल के पोल नहीं होते क्योंकि समाज में इनके अस्तित्व की छाप अमिट हो जाती है ।
ये जो बोलते है ।
वह कर दिखाते है ।
कभी – कभी ऐसा भी होता है कि यह जो भी करते है उसके बारें में स्वयं तो नहीं बोलते ।
परंतु सफल लोगों की दुनिया में इनका नाम बहुत गर्व के साथ लिया जाता है और अन्य लोग इनके बारें में स्वयं कह देते है कि ये जो बोलते है वे कर दिखाते है ।
यहां पर आकर यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि आप जो सोच रहें है वहीं हो रहा है ।
वास्तव में जो व्यक्ति जैसे भी कर्म करता है ।
उस कर्म के अनुसार ही उसकी ऊर्जा उस व्यक्ति का निर्माण करती है ।
इसलिये तो यहां पर आकर विवेकानंद जी की वह बात याद आ जाती है कि ऊर्जावान बनों ।
और हमारे अपने विवेक और बुद्धि के सद्उपयोग एक बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि ऊर्जावान तो बनना है किंतु किस प्रकार की ऊर्जा को संकलित करते जाना है ।
कभी-कभी तो ऐसा भी महसूस होता है कि क्या ऊर्जा ही वह मुख्य एवं शीर्ष उपाय है जो मनुष्य का निर्माण करता है ।
उसके भविष्य का निर्माण करता है ।
क्योंकि एक समय में एक व्यक्ति कुछ अच्छा काम कर रहा होता है ।
उसी समय कोई दूसरा व्यक्ति उस काम से जी चुराकर कोई अन्य काम क्यों करता है ।
अपनी ऊर्जा और व्यक्तित्व का अस्तित्व स्वयं को बनाना होता है
अर्थात् ब्रह्माण्ड की ऊर्जा हर उस एक व्यक्ति को उसके विचारों के अनुसार ही प्राप्त होती है ।
जिस प्रकार का वह व्यक्ति अपने आपको बनाते हुये चला जाता है ।
इसलिये तो यह बात को पूर्व में ही कहा जा चुका है कि हमारे विचारों की ऊर्जा Waves या तरंगों के रूप में यदि अंतरिक्ष तक जाती है ।
तो चूंकि प्रकार हमारा ही है इसलिये हम तक ही वह वापस भी आती है ।
इसलिये हमारे साथ कभी अच्छा उस समय भी हो जाता है जब हमें उम्मीद नहीं होती है ।
और कभी खुशी के उन पलों में दु:ख या विपरीत परिस्थिति एकाएक जन्म ले लेती है जिसकी हमें कल्पना भी नहीं थी ।
यह सिर्फ इसलिये हो रहा है कि एक समय में हमने कभी ऐसा कहा था ।
“हे भगवान मेरे तो भाग्य ही खराब है । “
बस एक अच्छे समय में जब आप खुशियां मना रहे थे तो भाग्य ही खराब कि rays आप तक पहुंच गयी। सच जानिये वह आपकी ही थी जिसे आपने कुछ पलों के लिये ब्रह्माण्ड में निहित कर दिया था ।
और आप निश्चित ही अपने जीवन में बदलाव महसूस करेंगे क्योंकि अब आपको यह पता चल गया है । कि हमें नकारात्मक नहीं सोचना है ।
जो भी सोचेंगे सिर्फ सकारात्मक ही सोचेंगे ।
उदाहरण से स्पष्ट हो सकता है ।
वह ऐसे कि – एक बार धीरूभाई अंबानी ने पेट्रोल पंप में काम करते वक्त ऐसा सोचा एवं कहा था।
कि एक दिन मै भी पेट्रोल पंप का मालिक होऊंगा बस उन्होंने जो सोचा आज पूरी दुनिया में हो वही रहा है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि रियांयस इंडस्ट्री मात्र एक तो क्या बहुत सी कम्पनीज़ के मालिक अंबानी परिवार ही है ।289
सारांश
अंत में सिर्फ इतना ही समझना होगा कि एक दो चार नहीं सैंकड़ों ऐसे उदाहरण है जो वास्तविकता की पराकाष्ठा को बिना लांघकर भी अपनी सत्यता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं ।
अब तो पूर्ण रूप से हम सभी को वही सोचना है जो हम चाहते है और चाहना सिर्फ वही है जिसे हम करने की इच्छा रखते है ।
फिर अंत में होगा भी वही जो हम सोचेंगे ।
इसलिये आज सिर्फ वही सोचिये जो हमको करना है ।
एकदम अंत में हो वही रहा है जिसके अनुरूप और अनुकूल आप अपने कर्म को कर रहे थे ।
अपनी सोच को निर्मित जैसा भी आप कर रहे थे , वही तो हो रहा है ।
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आत्मबल कैसे बढ़ाये ?