शिक्षा का महत्‍व (Shiksha Ka Mahatva)

शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण ज्ञान हैं

शिक्षा एक महत्‍वपूर्ण ज्ञान  है, जिस ज्ञान के चलते मनुष्‍य अपने अस्तित्‍व की पहचान  का प्रमाण दे पाते हैं।

अस्तित्‍व इनके आदर्शों का परिपालन समाज में समाज द्वारा  इनके व्‍यक्तित्‍व के माध्‍यम से करवाते रहता है।

शिक्षा का मौलिक अधिकार सभी को होता है।

शिक्षाहीन व्‍यक्ति मौन धारण किये हुए अर्थात् समाज में बुराइयों के बढ़ते हुए कदम पर आवाज नहीं उठा सकता ।

शिक्षा वास्‍तव में  व्‍यक्ति में परिवर्तन लाने की एक सतत् विधि है। इसके प्रकार तरह तरह से भिन्‍न भिन्‍न है।

वैसे तो बचपन, बाल्‍यावस्‍था की उम्र से होश संभालने तक का समय गुरू शिक्षा दीक्षा में चले जाता है ।

यहां दीक्षा , शिक्षा से अलग होते हुए संग-संग ही चलती है।

श्री राम, श्री कृष्‍ण काे भी शिक्षा के चलते ही दीक्षा संस्‍कार समारोह में सम्मिलित होकर दीक्षा ली ।

जीवन के हर क्षण, हर संकट से ,  अंधियारे से उभारकर प्रकाश में लाने का कार्य गुरु ही करता रहा है ।

शंका की  हर समस्‍या का समाधान गुरु के पास ही होता है ।

शिक्षा के माध्‍यम से ही गुरु  ने ही शिष्‍यों को दीक्षा का महत्‍व एवं संकल्‍प करवाकर  उन्‍हे ज्ञान देकर परिपूर्ण किया ।

उसके खाने–पीने  से लेकर उठने–बैठने और आचरण तक का पाठ गुरु द्वारा ही पढ़ाया गया , सिखाया गया ।

कहीं आचार्य जी  ने ,तो कहीं  गुरूओं द्वारा भी बालक का संस्‍कार , ज्ञान एवं चरित्र की विशेष शिक्षा दी गई ।

इस विधियों से गुजरकर वह बालक समय – समय पर जीवन की हर परीक्षाओं सम्मिलित होकर उत्‍तीर्ण होता गया ।

फिर बालपन  से किशोरावस्‍था ,युवावस्‍था फिर बुजुर्ग  अवस्‍था तक होता चला गया   ।

शिक्षा का प्र‍थम  एवं  द्वितीय चरण

शिक्षा का चरण मुख्‍य रूप से दो भागों में विभाजित हो गया ।

एक  मां से मिली शिक्षा , जिसे,  प्रथम पाठशाला भी कहा गया । दूसरी  स्‍कूली शिक्षा ।

अब स्‍कूली शिक्षा की बात करें तो, आपको याद होगा कि पहले बाल मंदिर हुआ करते थे ,गुरुकुल हुआ करते थे, आज भी हैं ।

जैसे श्री रावतपुरा धाम , लहार ,जिला – भिंड का गुरुकुल । रायपुर धनेली (छत्‍तीसगढ़ ) का आश्रम ।

बाबा रामदेव जी का ‘ गुरुकुलम’  इत्‍यादि ।

जहाँ से गुरु , शिक्षक , आचार्य द्वारा वेद,  पुराण,  शास्‍त्र,उपनिषद …. इत्‍यादि ।

समस्‍त प्रकार का ज्ञान हासिल करके शिष्‍य प्रकाशवान होकर जब समाज में अपनें  ज्ञान द्वारा प्रकाश फैलाते थे ।

लोगों की , सत्‍जनों की , दीन दुखियों की  सेवा में रहता था ।

गरीब व्‍यक्ति से अमीर व्‍यक्ति तक , हर धर्म के , हर मजहब के,हर वंश के लोगों का शिक्षा ग्रहण करने का अ‍धिकार है ।

यह समय के बदलते वातावरण के साथ- साथ अपने तरीकों में भी बदलाव करता गया ।

बालमंदिर से विद्यामंदिर  से पाठशाला , पाठशाला से ज्ञान मंदिर , यहाँ से शिशु मंदिर , फिर कहीं निजी तो कहीं सरकारी  होते चले गये ।

कहीं संस्‍कृत की पढ़ाई, तो कहीं हिन्‍दी की पढ़ाई , तो कहीं अंग्रेजी माध्‍यम का ब्रांड बन गया ।

संस्‍थाओं को चलाने वाले चेयरमेन , इनके सलाहकार , इनके सचिव इनके अध्‍यक्ष इत्‍यादि ।

अपने निजी सोच के साथ , ए‍क संयुक्‍त बैठकर करके , समिति गठित करके बैठकर लिए गये निर्णयों से शिक्षा का पेटर्न स्‍टेट बोर्ड, सीबीएसई, एनसीईआरटी… इत्‍यादि लाते रहे सरकार की नीति भी इस तरह डिसीज़न लेती रही।

तो निजी एवं प्राइवेट संस्‍थाओं को भी ये अपने अनुसार रुल्‍स एंड रेगुलेशंस के माध्‍यम से अनुबंधित करके परमिशन देते चले गये।

शिक्षा के पक्ष एवं विपक्ष में निर्णय  का होना 

राज‍नीति एवं इसके पालनहार राजनेता ने भी कुछ ऐसे डिसीज़न लेते गये जो कहीं विद्यार्थी जीवन के पक्ष में थे तो कहीं विपक्ष में, निर्णित होते रहे।

जैसे आज के एजुकेशन में टेक्‍निकल और नॉन टेक्निकल कोर्सेस।

कुछ शिक्षा विद्यार्थीयों के अपने भविष्‍य को लेते हुए काम आएगी और कुछ का पता ही नहीं चलेगा ।

इस तरह से एजुकेशन सिस्‍टम समझ में आया। ये उद्देश्‍य व्‍यवसाय और नौकरी जिसके चलते रोजगार मिलेगा के अंतर्गत है ।

जैसे एल एल.बी. की पढ़ाई के बाद वकील बनकर रोजगार प्राप्‍त करना जो की अपना प्राइवेट व्‍यवसाय होता है ।

बी.ई./बी.टेक. के बाद इंजीनियर बनकर किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी या प्रतियोगिता पास कर के सरकारी नौकरी प्राप्‍त करना ।

बारहवीं के बाद डी एम एल टी, बी ए एम एस, बी एच एम एस, एम बी बी एस के बाद डॉक्‍टर बनना ।

बी फॉर्मा, एम फॉर्मा, डी फॉर्मा करने के बाद मेडिकल स्‍टोर्स खोलना ।

केमिस्‍ट  बनकर अपना व्‍यवसाय चलाना या हेल्‍थ केयर सेंटर खोलकर डॉक्‍टरी प्रेक्‍टिस करके अपना व्‍यवसाय चलाना ।

एग्रीकल्‍चर विषय से एग्रीकल्‍चर साइंटिस्‍ट या किसी बड़ी कंपनी से जुड़कर किसानों एवं कास्‍तकारों को मदद करना ।

अपना  जीवन निर्वाह करना अर्थात् रोजगार प्राप्‍त करना  ।

उद्देश्‍य सिर्फ इतना ही देखने में आया इसका दूसरा पर्याय यह भी है कि सिर्फ पैस कैसे कमाया जाए ।

यह जीवन का मात्र, यह उद्देश्‍य रह गया ।

शिक्षा अपने उचित मार्गदर्शन में रहकर अपने साथ औरों को भी  रास्‍ता दिखाने को कहती, परोपकार करने को कहती ।

व्‍यक्ति में, समाज में, परिवर्तन के लिए जरूरतमंदो की मदद के लिये कहती।

शिक्षा के इसी बदलाव के कारण हम मानव समाज में कुछ से लेकर बहुत ज्‍यादा सोच में परिवर्तन जिससे होगा तक‍नीकी में परिवर्तन, के लिये बदलाव लाने में निरंतर प्रयासरत रहेंगे जिसके अनुसार अगले बिंदुओं में ……………..