Contents
- 1 परम शक्ति को कैसे हासिल करें ?
- 2 सामान्य लक्षण का प्रतीत होना
- 2.1 कैसे काम करती हैं ये परम शक्ति ?
- 2.2 परम शक्ति का अहसास क्या सफलता में छुपा है?
- 2.3 एक खौफ की वजह वैश्विक महामारी कोरोना
- 2.4 बुद्धि एवं विवेक द्वारा नजरिया बदलना
- 2.5 बताये हुए रास्ते में ही विश्वास और शक्तियाँ
- 2.6 ऋषि मुनि द्वारा रचित ग्रंथों द्वारा रास्ता का मिलना
- 2.7 विश्वास एवं अंधविश्वास में सत्य को जानना
- 2.8 एक कहानी, सत्य मानें हकीकत में सत्य (प्रथम भाग)
- 2.9 द्वितीय भाग
- 2.10 प्रभु कृपा से ही मिलती है: ज्ञान एवं कलाएं
- 2.11 परम शक्ति महसूस कर चौंक जायेंगे –
- 2.12 पुन: एक नया आश्चर्य जो परम शक्ति को स्वीकार करवायेगा
- 2.13 अब पहुंचे कहानी के सार में
- 2.14 परम शक्ति ही विश्वास एवं संतुष्टि को जन्म देती है
परम शक्ति को कैसे हासिल करें ?
परम शक्ति क्या है ? एक , बहुतों का common सवाल होता है ।
कि क्या वास्तव में परम शक्ति होती है ।
और यदि होती है तो क्या वे वास्तव में हमें ऐहसास होती है ।
सामान्य मनुष्य के वश में ये संभव हो सकती है ।
विचित्र किन्तु सत्य है । क्या, इसका अस्तित्व होता होगा !
क्या ये परोपकार करने वालों को स्वाभाविकत: नसीब हो जाती होगी द् । वास्तविकता, सत्य से असत्य की ओर या असत्य से सत्य की ओर होती होंगी ।
कहने का तात्पर्य सिर्फ उस विश्वास को हासिल करने का है , जो प्रमाणित करे , कि वास्तविकता में सत्य हैं ।
या फिर पुन: वास्तव में सब असत्य है । बकवास , कोरी कल्पना है।
मनुष्य में इस बात को लेकर बहुत ज्यादा उत्साह होता है । कि क्या हकीकत के अंदर या इससे परे कोई सत्य है, या नहीं ।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सचमुच पूरे ब्रह्माण्ड में कोई अविश्वसनीय रहस्य है । जिस पर, विश्वास किया जा सके ।
या फिर पूरे संसार में किसी विश्वसनीय रहस्य को अविश्वसनीय माना जा सकता है ।
आखिर क्यों ? जरूरतमंद लोगों की आवश्कता बनती जा रही है ये अद्भूत शक्तियों का ऐहसास ।
अब हम इस प्रश्न पर पुन: विचार किया करते हैं ।
कि यदि किसी व्यक्ति में उसकी अद्भुत एवं विलक्षण शक्ति को महसूस किया जाता है ।
तो किन लक्षणों को सामान्यत: अंदाजा जाना चाहिए ।
शायद एक बहुत बड़ा सवाल आप सभी के मन में यही आता होगा, कि कैसे अंदाजें ?
तो बड़ा स्पष्ट है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व जब बोलता है ।
तो वही व्यक्तित्व उसके वर्तमान और जुड़े हुए भविष्य का अहसास भी कराता है ।
सामान्य लक्षण का प्रतीत होना
यदि गौर से देखा एवं समझा जाए ।
तो उस व्यक्ति का व्यक्तित्व भूतकाल से ही उज्जवल एवं जाग्रत अवस्था में रहा होता था ।
यही लक्षण जिसे हम सभी सामान्य एवं सरल रूप से संस्कार एवं आदर्श कि परिभाषा लिये हुए मान बैठते हैं ।
अब यदि हम पूरे संसार में देखने की बात तो बहुत दूर है ।
मात्र और सिर्फ यदि अपने इर्द-गिर्द और आस-पड़ोस से लेकर गांव और नगर में नजरें डालें ।
तो भी ऐसा देखने को बहुदा मिल जाता है ।
किसी-किसी में परिवर्तन दो से पांच साल में एकदम अविश्वसनीय जैसा सकारात्मकता को लिये हुये हो चुका होता है ।
इसे भी हम शायद यदि उसकी सफलता मानते हैं ।
फिर यह भी तो सत्य है कि एक व्यक्ति बहुत ज्यादा मेहनत दिशात्मक दिृष्टि से भी होने पर वह उसे असफलता ही दिलाती है ।
इसे हम यही कहकर समझ लेते है कि शायद तरीके गलत थे ।
या उसका आत्म विश्वास उसे सफल नहीं होने दिया ।
क्या है मेहनत ?
आत्मविश्वास क्या है ? क्या है कर्म ? क्या है दिशा ?
इन तमाम सी बातें और विचार जो हमारे जीवन में गहरे प्रश्न चिन्हों के साथ सदैव खड़े रहते हैं ।
कैसे काम करते हैं ये सब । सच पूछा जाए तो लोगों ने भाग्य एवं ज्योतिष में जाकर भी अपनी तकदीर को आजमा लिया ।
सफलता को सुख एवं दुख की परिभाषा असफल होने में ढूंढ़ने लगा ।
कैसे काम करती हैं ये परम शक्ति ?
उपर्युक्त सभी प्रश्न या विचार जिन्होंने मनुष्य के जीवन को असंतुलित कर दिया है ।
यह विचार एवं युक्तियों को ढूंढ़ने के लिये भी मनुष्य स्वयं ही परेशान रहता है ।
सफलता की परिभाषा तो कर्म की कर्मठता जो दिशात्मक रूप से अपने स्वरूप को धारण करती है ।
यही सत्य है जिस प्रकार तलवार म्यान में ही सुरक्षित रहती है एवं एक म्यान में एक ही होती है ।
उसी प्रकार यदि किसी वस्तु या चीज को जब कोई व्यक्ति पाने के लिये आतुर होता है ।
तो वह वस्तु उस व्यक्ति तक सिर्फ इसलिये ही नहीं पहुंचती है कि वह उसे हमेशा आकर्षित करते रहता है ।
जैसा कि हमें कुछ विद्वानजनों ने यह बताया है कि जिस चीज को आप चाहते हो वह आपको मिल जाती है ।
यही रहस्य का नियम है ।
किंतु इसके साथ हमें यह भी तो अपने विश्वास में धारण करना चाहिए ।
कि पाने के लिये कर्म और वस्तु आप तक पहुंचने के लिये दिशा भी जरूरी होती है ।
जिसे शायद आम आदमी ना करने कि चाहत रखते हुये भी उसे पाना चाहता है ।
यह तो ऐसा लगता है कि मानों वस्तु को दूसरे प्रकार से छीन कर भी अपने वश में किया जा सकता है ।
सच जानिये अगर ऐसा होने ही लगता, तो फिर सफलता भी छीना-झपटी के हाथों छीनीं जा चुकी होती ।
परम शक्ति का अहसास क्या सफलता में छुपा है?
सभी के मन में यही प्रश्न प्राय: आते रहता है ।
सफलता पा लेने से ही शक्तियाँ हासिल हो जाती है जो व्यक्ति प्राप्त नहीं कर पाते हैं । । because, समाज में आज उसी का बोल-बाला समझ में आता है ।
जिसके पास सब सुख-साधन एवं सम्पन्नता दिखाई पड़ती है ।
उसी का बाहुबल एवं आत्मबल भी बढ़ा हुआ नजर आता है समाज में, राजनीति में, शासन में एवं प्रशासन में ।
यहां तक कि स्वयं भी किसी बहुत बड़ी हस्ती के रूप में अपने आप को महसूस करवाते हुये नजर आता है ।
अन्य किसी दूसरे या तीसरे व्यक्ति को शायद वह हेय या छोटे कि दृष्टि से देखता है ।
तब, यहां पर आकर यही अहसास होता है, कि क्या नीचा दिखाने वाले लोगों के पास सभी ताकतों का बोलबाला है ।
वस्तुओं कि सुविधा है , चहुंओर से धन सम्पन्नता के सुख साधन है एवं रास्ते है ।
इन्हें पा लेने वाले लोगों के पास ही क्या वे परम शक्तियाँ होती हैं , यही सत्य है ।
हम यहां अमेरिका, जापान, चीन रूस या फिर अन्य विकसित देशों के स्वरूप में भी बात कर सकते हैं ।
क्योंकि, आज वर्तमान परिवेश में जिन परिस्थितियों से , पूरा भारत वर्ष गुजर रहा है ।
उस गुजरते हुए हर दिन, हर पल, पल-पल यादों मे समा चुके हैं ।
हजारों, लाखों बल्कि करोड़ों हमारे अपने देश वासियों के दु:ख दर्द को देखते हुए पीढ़ा होती है ।
यहां तक कि, जो आज हमारें बीच से सिर्फ इसलिये बेसमय गायब हो गये हैं ।
उस मौत की अंधियारी में सदैव के लिये सो चुके हैं जिनके पास शायद बचने के लिये परम शक्तियॉं नहीं थी ।
पुन: एवं बारंबार शनै:-शनै यही प्रश्न हमारे मन को विलोडित करता रहता है ।
प्राय:-प्राय: कष्ट एवं संकट मन में उत्पन्न होते रहता है ।
एक खौफ की वजह वैश्विक महामारी कोरोना
2019 से प्रारंभ होकर आज तक हम ”वैश्विक महामारी कोरोना” की वजह से सिर्फ एक ही खौफ में जी रहें है ।
एक ही डर हमें सदैव सताते रहता है ।
मानों कि एक सांप के मुंह को एक लकड़ी से दबा दो एवं उसकी पूंछ को दूसरी लकड़ी से ।
इसके पश्चात् इस पर भरपूर एवं बलपूर्वक कई लोग मिलकर भयंकर प्रहार करें ।
निश्चित है कि वह मर जाएगा।
जो कि एक बहुत बड़ा अन्याय होगा ।
कहने का तात्पर्य यह है कि, आज सामान्य मनुष्य सिर्फ इस बात एवं भ्रम में जी रहा है कि सत्य एवं असत्य में फर्क क्या है ?
हे प्रभु ! हम इन परम शक्तियों से सुसज्जित व्यक्ति हो चाहे राष्ट्र ।
इनको हम सिर्फ एक ही प्रार्थना पहुंचाने का निवेदन करते हैं ।
कि यदि आपको भगवान ने यदि बलशाली एवं शक्तिमान बनाया है ।
तो आप उसके माध्यम से किसी की रक्षा करने को ही अपना औचित्य समझिये ।
सत्य यह है, कि क्षण भंगुर है यह वह समय ।
जो आपके और हमारे बीच खिलौने की तरह चल रहा है ।
किंतु ,यह समय ने, ना जाने कितनों को, इतिहास के पन्नों को, पढ़ने की भी इच्छा छीन ली है ।
क्योंकि, किसी भी प्रकार का वेद, साहित्य,शास्त्र, पुराण इतिहास देखने की कोशिश करते ही यही सीखने, देखने को महसूस होता है ।
किसी ने अपनी शक्ति का दुरूपयोग करके किसी अन्य निर्दोष को दु:ख दिया है ।
उसके सुख का साधन सिर्फ इसलिये छीनने की कोशिश की गयी है ।
क्योंकि, उसे इसी प्रकार हासिल करके ही, स्वयं समृद्धशाली हो सकते थे ।
बुद्धि एवं विवेक द्वारा नजरिया बदलना
यह नकारात्मक दृष्टिकोण है जिसमें किसी कि किसी प्रिय वस्तु को झपटने का भाव समझने में आया है ।
इसी का एक दूसरा पहलू भी हमारे सकारात्मकता का नजरिया प्रदर्शित करता है, इंगित या इशारा करता है ।
कि हम विरोधी ताकतों से अपने आप की, अपने सम्मान की , अपने हित की सुरक्षा और अपने समाज की रक्षा करें ।
यह परम शक्तियों का सद्पयोग होगा क्योंकि यह नि:स्वार्थ किसी की रक्षा के लिये किया जाता है ।
भगवान परशुराम जी ने भी अपनी शक्तियों से दुष्टों एवं दुर्जनों का नाश किया ।
पवनसुत हनुमान जी ने भी विध्वंशकारी एवं विरोधी ताकतों जिन्हें राक्षस कहा जाता था, के बीच हड़कंप मचा दिया ।
अब मन में विचार आता है कि, हनुमान जी के पास परम शक्तियां कहां से, कितनी कब आयी ?
उत्तर में बहुत ज्यादा उत्साह बनाये हुये सिर्फ यहीं प्राप्त होता है।
कि क्या श्री राम की, माता अंजना या फिर पिता केसरी नंदन जी की या फिर इनके कुल देवता पवन देव की ।
या फिर ध्यान शक्ति एवं योग शक्ति के बल पर ।
अन्य कुछ इस तरह के जवाब भी मन सदैव इकट्ठा करने के लिये आतुर रहता है ।
कि समस्त देवी देवताओं ऋषि मुनियों वन देवी देवताओं देवर्षि ब्रह्मर्षि और महर्षि का आर्शीवाद था ।
जो हनुमान जी पर सदैव बरसते रहता है ।
जिसके कारण उनकी परम शक्तियों को आज भी मनुष्य अपनी रक्षा एवं सुरक्षा के लिये उपयोग करता है ।
ज्ञान, बल एवं बुद्धि के लिये साथ ही विद्या के लिये भी स्वयं पाते रहता है ।
सारा संसार इनके नाम का कीर्तन यश एवं विश्वास बनाये हुये सतत् राम के नाम की माला को जपा करता है।
परम शक्ति, उस आशय से भी सत्य है, जिसमें लोक कल्याण का कार्य एवं हित छुपा हो ।
बताये हुए रास्ते में ही विश्वास और शक्तियाँ
आज व्यक्ति के सामने जब बहुत बड़ा संकट आ खड़ा होता है ।
तब, वह उस परम शक्ति से ही उस संकट से लड़ने के लिये ताकत मांगता है ।
उसका यह विश्वास ही, उसे उस परम शक्ति का ऐहसास कराते रहता है ।
तभी तो हर व्यक्ति, पूरे संसार में, किसी ना किसी को, किसी ना किसी के रूप में, कहीं ना कहीं, किसी ना किसी विधि से, मानता है । । इनमें से कुछ मानने के साथ-साथ उन शक्तियों को जानते भी है ।
चाहे देवी-देवता हो हिंदुओं के, चाहे अल्लाह हो मुसलमानों के, चाहे ईशु हो ईसाइयों के ।
बुद्ध और फारसियों के या फिर जैन मुनि हो जैनों के या फिर गुरू नानक देव हों सरदारों (पंजाबी/जाटों) के ।
इसी तरह से हर, व्यक्ति को अपने विश्वास को पूर्ण करने के लिये किसी ना किसी शक्ति को स्थिर करते हुये रहना होता है ।
उसे अपने अस्तित्व में ही अडिग रखना होता है ।
चाहे फिर सिंधी समाज के लोग सत् करतार या फिर भांति-भांति से वे सभी मनुष्य ।
जिन्होंने कीड़े-मकोड़ो से लेकर जीव-जंतु तक पत्थरों से लेकर पहाड़ों तक।
पानी से लेकर सागर तक, पौधों से लेकर पेड़ों तक बेटी से लेकर माता तक ।
बच्चे से लेकर पिता तक, शिव से लेकर पार्वती तक, सीता से लेकर राम तक, लक्ष्मी से लेकर विष्णु तक ।
पाताल से लेकर पृथ्वी से लेकर आकाश/अंतरिक्ष तक कहीं ना कहीं इन सभी के अस्तित्व को भी माना है ।
या ये कहे कि इनमें भी परम शक्तियों का अहसास किया है।
और उनसे इच्छानुसार उस मनुष्य ने पाया ही है ।
ऋषि मुनि द्वारा रचित ग्रंथों द्वारा रास्ता का मिलना
भारत देश में पूरे संसार की तुलना में सबसे ज्यादा विश्वास, वेद ,पुराणों एवं शास्त्रों की मदद से और ज्यादा ही बढ़ गया है ।
प्रत्येक वस्तु का यहां महत्व होता है ।
हमने कहीं वेदों में सुअर का भी महत्व बताया है ,जिसे वराह अवतार की संज्ञा दी गयी है ।
तो निश्चित ही मन में, वह अवतार सुनकर बहुत भयंकर ताकत की कल्पना आती है ।
इसी तरह यदि पीपल या बड़ देवता की बात करें ।
मानने वालों ने इनमें भी श्रीफल, धागा, तिलक पुष्प एवं प्रसाद देकर अपनी सफलता में वृद्धि महसूस की है ।
हो सकता है कि विश्वास करने वालों को स्वयं परम शक्तियां रहीं हो ।
विश्वास तो करना होगा ।
कि, जिस चीज से वे संतुष्ट होते है ।
आगे बढ़ने का श्रेय भी उन्हीं चीजों को देते हैं, उनमें ही सही किंतु परम शक्ति निश्चित ही, होती ही है ।
फिर चाहे मछली को फुटाने या आटे की गोली खिलाकर ही लोगों को ऐसा कहते सुना है ।
कि हमनें जब से यह किया है हम आज बहुत आगे हैं ।
समृद्ध लोगों ने तो घर में इक्वेरीयम रख कर जल जीवों की सेवा की है ।
यह बहुत सकारात्मक एवं सेवा भाव जाग्रत करने वाला विचार है ।
इसी का एक और दूसरा पहलू उन सभी लोगों का भी है ।
जो अपने नजरिये को अपने हिसाब से दूसरी ओर ले जा कर यह मानते है कि मछली खाना भी हमारे लिये लाभ प्रद होता है।
और इसके खाने के बाद ही हम स्वस्थ रहते है ।
क्योंकि हमें यह पौष्टिकता प्रदान करती है ।
इसमें प्रोटीन और अन्य विटामिन और मिनरल्स हमारी बॉडी को जब संतुष्ट कर देते है ।
तो निश्चित ही हमारे अंदर, ब्रह्म शक्तियों का उत्पादन अपने आप शुरू हो जाता है।
विश्वास एवं अंधविश्वास में सत्य को जानना
अब , हम इन दोनों उपरोक्त बातों में से जिस ओर भी अग्रसित होते है ।
वह हमारा अपना निजी रहन-सहन, रवैया, शौक, पक्ष में या विपक्ष में रहना ।
और यहां तक कि विश्वास और अंधविश्वास की परिभाषा भी स्वयं को, स्वयं के द्वारा भी दे देते है ।
यह कहा जा सकता है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिये किसी के लिये कोई सत्य बात किसी अन्य के लिये असत्य हो सकती । है वह किसी की भावना को ठेस पहुंचा सकती है ।
यहां पर आकर यह समझ में आता है ।
कि व्यक्ति एवं स्वार्थ एवं नि:स्वार्थ के बीच खड़ा होकर सदैव उस और ही चलता है ।
जिधर उसकी मानसिकता उसे अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने के लिये फायदे के लिये होती है ।
यहां पर वह सिद्धांत, नियम हर व्यक्ति के अपने-अपने निजी और व्यक्तिगत हो जाया करते है।
और लड़ाई झगड़ा यहीं से शुरू होता है कहीं विचारों का कहीं मन का कहीं मतों का।
कोई भी यही चाहेगा कि, हमारा अपना यह मत हमारे शास्त्रानुसार सत्य है ।
इसके अनुसार ही हमें चलना चाहिये ।
किंतु, सबका अपना-अपना मत अपने-अपने शास्त्रों के अनुसार कोई किसी पर थोंप नहीं सकता है ।
और अपने-अपने रास्ते पर अपने-अपने सिद्धांतो का पालन करते हुये चलना ही लड़ाई-झगड़ो से दूर रहना है।
किसी पर मढ़ना या थोंपना ही लड़ाई की मुख्य जड़ बनती है ।
यहां से ही वह परम शक्ति अपना रूप दिखाना प्रारंभ करती है तब प्रारंभ होता है ।
धर्म ….. लेख का इंतजार करें।
एक कहानी, सत्य मानें हकीकत में सत्य (प्रथम भाग)
विचार करते-करते मन में एक ख्याल आया ।
इस विचार में एक गांव की एक छोटी सी बिल्कुल सत्य कहानी है ।
इसमें एक अमरवाड़ा नाम का एक गांव है वहां एक विश्वकर्मा परिवार रहा करता है ।
उस व्यक्ति के पास ना जमीन है ना जायदाद ना ही सरकारी नौकरी। ना ही वह पढ़ा लिखा है ।
बचपन से परिवार बनने तक, जिसमें आज दो बच्चे भी है ।
भगवान का भजन और कीर्तन करता था ।
किसी ने उससे कहा तुम राम के बारे में कुछ सुनाओ ।
उसने कहा कि क्या सुनाऊ ।
क्या और कहां से शुरू करूं और कहां तक उस प्रभु सत्ता के नाम का वर्णन करूं ।
इच्छुक और उत्साही लोगों ने उसकी भावना को टटोलते हुये उससे कहा ।
जो भी तुम सुनाना चाहते हो, तुम सुना दो ।
बस ,इतना सुनकर उसने रामायण के प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक या पद या दोहे से जो बोलना शुरू किया ।
लोग उसे सुनते ही रह गये । कुछ लोगों को आश्चर्य हुआ, कि ऐसा कैसे संभव है ।
ऐसा सोचने पर श्रोता गण हतस्तब्ध रह गये।
और उन्हें आश्चर्य हुआ।
कि ये तो अपनी अमृतमयी वाणी से पूरे म्युजिकल इंस्ट्रुमेंट के साथ है।
तरह-तरह की कलाओं का प्रदर्शन करते हुये इतनी सुंदर आवाज एवं अंदाज में रामायण वाच रहे थे ।
मानों की गोस्वामी तुलसीदास जी स्वयं हमारे सम्मुख प्रकट हो चुके हैं ।
इस प्रकार के कुछ कार्यक्रम गांव से प्रारंभ हुये और शहर-शहर तक फैलते चले गये ।
यहां तक की लोगों ने उनका नाम रामायणी रख दिया।
द्वितीय भाग
एवज में, लोगों ने उन्हें कुछ, अन्न दान, कुछ वस्त्रदान तो कहीं धन दान से सम्मानित किया।
उनसे पूछने पर ऐसा पता चला कि इस प्राप्त किये गये सम्मान से ही वे अपने पूरे परिवार का भरण –पोषण करतें हैं ।
एवं पालन कर्ता के रूप में अपनी भूमिका को पूर्णत: निभाते चले आ रहे है ।
हो सकता है, आप लोगों के मन में उनसे मिलने की इच्छा हो ।
तो आप लोगों को दो बातें हम स्पष्ट करना चाहेंगे ।
एक तो यह है कि 2002-03 में उनके दर्शन एक हनुमान मंदिर, गंज वार्ड, जिला सिवनी में हुये थे ।
दूसरा कि वे अमरवाड़ा के ,आजू-बाजू के कोई गांव से भी रिलेटेड हो सकते है ।
ऐसे व्यक्ति से मिलकर या इनके दर्शन पाकर हमें तो ऐसा लगा।
साक्षात् भगवान श्री राम एवं माता की अनुमति से ही हमें कोई प्रभु सत्ता का ज्ञान करा रहा था ।
इस संवाद के बारें में, या अध्याय के बारें में तो समुंदर जैसा भी बतायें और लिखते चले जाये। तो भी गागर में सागर ही होगा ।
फिर तो हम किंचित मात्र भी संदेह नहीं करते कि ये तो एक बूंद के बारें में ही आप लोगों को जानकारी दिये है ।
प्रभु कृपा से ही मिलती है: ज्ञान एवं कलाएं
उपरोक्त विषयान्तर्गत हम सिर्फ यह बताना चाहते है।
कि सामान्य मनुष्य में इतनी विलक्षण शक्ति, ज्ञान और कला जिसे पूरा संसार सुनना चाहता है देखना चाहता है।
और दर्शन करना चाहता है ।
लेखक यहां यह स्पष्ट कर रहा है।
इस बात को हो सकता है कुछ लोग, ना मान पायें।
किंतु ,आप स्वयं उन तक पहुंच सकते हैं ।
इसलिये गांव और उनके उपनाम की चर्चा हमने कर दी है ।
कुछ लोग अपने व्यक्तिगत विषय से रेलिवेंशी रखते हैं।
और उनका अपना उत्साह एवं जानने का विषय शायद यह ना हो ।
किंतु, बात या सत्यता झूठलायी नहीं जा सकती है ।
और यह भी है कि ,जब ऊपर वाले ने या आप जिन्हें भी मानते हैं उन्होंने ही चाहा होता है।
तब जाकर ऐसे अद्भूत एवं पूरे लोक में प्रकाश करने वाले नर ही नारायण स्वरूप धरा पर अवतरित होते रहते हैं ।
यहां पर आप सभी को हम उस ओर ही लिये जा रहे हैं जिस विषय का नाम है परम शक्ति ।
बताने का मतलब यह था, कि यह क्या परम शक्ति एक गरीब परिवार में किसी को मिल जाने से सिद्ध नहीं होती है ।
परम शक्ति महसूस कर चौंक जायेंगे –
आश्चर्य यह कि, जब हमनें उन परमश्रद्धेय रामयणी जी से पूछा कि आपके बच्चे किस कक्षा में पढ़ते है।
और उनमें भी क्या परम शक्ति पूरे ब्रह्मण्ड को आलोकित करने के लिये, प्रकाश फैलाने के लिये प्रकट हुयी है ।
तो उन्होंने कहा कि बच्चे तो 4 थीं और 6वीं में है।
किंतु, वे भी इतनी छोटी उम्र से ही भगवान श्री राम की कृपा के सानिध्य में ही हैै ।लोगों को उनकी इच्छानुसार छन्द, दोहे, सोरठा और चौपाईयां सुनाते रहते हैं ।
एवज में,लोग प्रसन्न होकर उन बच्चों को भी ,आर्शीवाद स्वरूप कुछ ना कुछ भेंट करते हैं ।
और फिर हमारे पूरे परिवार में हमारी आर्थिक स्थिति भी दुरूस्त होती चली जाया करती है ।
पुन: एक नया आश्चर्य जो परम शक्ति को स्वीकार करवायेगा
यह यह आश्चर्य ऐसा हुआ जिसका उत्तर 2004 सितम्बर में मिला, जो रामायणी जी के अनुसार सही था ।
वह यह था कि हमनें उनसे भगवन दर्शन के बारें में पूछा था ।
तो उन्होंने कहा था कि, हां इस शहर से दूर हनुमान जी के स्वरूप में पूजे जाने वाले संत आपके जीवन में आपको दर्शन देंगे ।
यहीं रामायण मैया का आपके ऊपर आशीर्वाद है ।
बस, समय बीतता चला गया ।
और हम उन पलों के इंतजार में अपने स्वयं को समेटे हुये थे।
एक दिन 2, सितम्बर 2004, दिन गुरूवार, हम पेंचवेली ट्रेन से छिन्दवाड़ा से भोपाल की ओर प्रस्थान किये ।
बीच में यह बताना चाहेंगे, कि तारीख 3 सितम्बर 2004, दिन शुक्रवार को सुबह 6 बजे लगभग हम रेल्वे स्टेशन भोपाल पहुंचे।
वहां से कुछ कदमों को चलने के उपरांत जवाहर चौक हमें नसीब हुआ ।
हमें एक सुमो कार मिली जिसमें जबलपुर हाईकोर्ट के एडवोकेट मिस्टर शुक्ला जी, उम्र करीब 26-28 साल महसूस हुयी थी ।
वे सज्जन वहां से लेकर पचपेढ़ी सिद्धिविनायक आश्रम तक हमें ले गये।
जाते हुये, आश्रम में क्या होने वाला था, के बारें में सम्पूर्ण जानकारी दे रहे थे ।
मानों कि ,वे भविष्य वक्ता थे ।
वैसे तो पूरी ट्रेन में भी एक भक्त, करेली गाड़रवाड़ा के मिस्टर रघुवंशी जी, जो गाड़ी चलाया करते थे।
भोपाल में क्या होगा ,सब बता दिये थे । ये समस्त प्रकार की बातें भी अटल सत्य है ।
किंतु ,तारीख 4 ,2004 माह सितम्बर, दिन शनिवार सुबह आठ बजे प्रभु श्री रावतपुरा सरकार ने दर्शन दिया।
इशारा करके उतनी भीड़ में से मुझे बुलाया ।
और प्रथम आरती हाथ में सम्मानित कर दी गयी ।
वह आरती, प्रभु श्री के चरणों में मंत्र उच्चारणों के साथ ,सम्पूर्ण प्रार्थना के लिये दी गयी थी ।
अब पहुंचे कहानी के सार में
अब जाकर वह हनुमान मंदिर गंज वाले विश्वकर्मा जी की बात पूर्णत: सत्य हुयी ।
और वे दूसरा दर्शन, अभी तक तो हमें नहीं दिये, किंतु मन करता है ,उनके दर्शन करके आयें ।
सच जानिये पूरे जीवन में फिर कभी हार या दु:ख से विचलित नहीं हुये।
बताने का मकसद सिर्फ इतना ही है कि परम शक्ति से निश्चित ही आप सभी को लाभ होता ही है।
दर्शन भी आप लोग पाते हो ।
यही परम शक्तियां ,हमारे विचारों के अनुसार हम अपनी चाहे गये विषय के अंतर्गत व्यक्त की गई है ।
आप लोग सुख-सुविधाओं, सम्पन्नताओं, धन-दौलत और गाड़ी मोटर-बंगला यहां तक की ऐश-आराम से लगा बैठते हैं ।
जबकि यह तो भाग्य और किस्मत के चलते ज्यादाकर लोगों को नसीब हो जाता है ।
जो लोग इससे वंचित रह जाते हैं ।
वे अपने कर्मानुसार अपने जुनून और उसको पा लेने की ठान लेने की वजह से भी प्राप्त कर लेते है ।
किंतु ,तीसरा यह पहलू जीवन में बहुत ज्यादा मायने रखता है।
कि आप प्रथम और द्वितीय स्थिति में हों या ना हों।
किंतु,आप उस परम शक्ति का सानिध्य पाकर हजारों लोगों को प्रथम एवं द्वितीय स्थिति में लाने की वजह जरूर बन जाते हैं ।
ऐसे आने वाले पोस्ट में बहुत सी सत्य बातें विथ डेट, स्थान, आपको रूबरू करावायेंगे ।
जिनसे आपको आत्मबल एवं आत्मविश्वास नसीब होगा ।
और आप इनकी बदौलत परिश्रम,कर्तव्य, प्रयास, कर्म पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ करेंगे ।
विश्वसनीयता के सानिध्य में करते हुये अपने पूरे जीवन को निश्चित ही सफल बनावेंगे ।
परम शक्ति ही विश्वास एवं संतुष्टि को जन्म देती है
अंत में, सिर्फ इतना ही की परम शक्ति से क्या मिलता है ?
ये परम शक्तियां किन्हें प्राप्त होती हैं ।
इस प्रकार के तमाम से विचार आपके मन को विचलित नहीं करेंगे ।
क्योंकि इनकी कृपा एवं दया उन लोगों को/भक्तों को/अनुयायियों को और प्रेरित हुये लोगों को खासकर सहज ही मिलने लगती है
और अंधविश्वास की सीढ़ी चढ़ने की सलाह लेखक आपको कहीं से देना नहीं चाहता है ।
बल्कि ,बुद्धि एवं विवेक के पूर्णत: प्रयोग के द्वारा ही संभव है ।
और विज्ञान की पराकाष्ठा के अंतर्गत आपको चलने की परमशक्ति प्रेरणा देती रहेंगी।
ऐसा हमारा परम विश्वास है ।
और एकदम आखिरी में सिर्फ यह कहेंगे कि – निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र ना भावा ।
सुंदर काण्ड के मंत्र/श्लोक में भी स्पष्ट कर दिया गया है।
जो भी शक्तियां, कृपा, दया किसी भक्त को नसीब हुयी है।
वे प्रभु स्वयं की कृपा से ही मिली है ।
और भी ऐसे अनेको नाम आपको आगे बढ़ाने एवं सफल होने के लिये हैं ।
हम अपनी तरफ से और अपनी तरह से आपके सामने प्रस्तुत करते रहेंगे ।